दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर लग सकती है रोक, सुप्रीम कोर्ट करेगी फैसला

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चुनाव आयोग ने यूपी समेत पांच राज्यों में चुनावों का ऐलान हो चुका है ।सभी प्रत्याशी विधानसभा में पहुंचने के लिए पूरे दम-खम के साथ चुनावी ताल ठोंक रहे हैं। बाहुबलि, माफिया और गंभीर आपराधिक मामलों में वांछित दागी नेता भी चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। लेकिन अब दागी उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। दागियों के चुनाव नहीं लड़ने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है।

ऐसे में इन चुनावों में दागियों को उम्मीदवार बनाने वाले सियासी दलों में हलचल मचना स्वाभाविक है, जो राजनीति के अपराधिकरण को खत्म करने की दुहाई देने के बावजूद बाहुबलियों व माफियाओं को अपना प्रत्याशी बनाने में कभी पीछे नहीं रहे हैं। संविधान विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस याचिका को गंभीरता से लेने से पांच राज्यों में चुनाव को देखते हुए जल्द ही यह बेंच कोई अहम फैसला सुना सकती है।

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सुप्रीम कोर्ट में गंभीर आपराधिक मामलों में वांछित लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई के लिए तैयार है, कोर्ट ने इसके लिए पांच जजों की बेंच के गठन की भी बात कही है।

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प्रधान न्यायाधीश जीएस खेहड की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘हमें इस मामले को स्पष्ट करना होगा ताकि अगले चुनाव तक लोग नियमों को जान सकें।’ इसको लेकर दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि ऐसे मुद्दों पर जल्द-से-जल्द फैसला करने की आवश्यकता है क्योंकि कई ‘शातिर अपराधी’, जिनके खिलाफ गंभीर मामलों में आरोप तय किये गये हैं, आगामी चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं। न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना और न्यायमूर्ति डीवाइ चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम इन मुद्दों पर निर्णय के लिए जल्द ही एक संविधान पीठ का गठन करेंगे।’ वकील और दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने इस मुद्दे को लेकर दायर जनहित याचिका का उल्लेख किया।

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चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि उम्मीदवारों के लिए यह अनिवार्य बनाया जाना चाहिए कि वे नामांकन पत्र भरते समय अपने साथ-साथ अपने परिवार के सदस्यों की आय के स्रोत का खुलासा करें ताकि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता लायी जा सके। चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में भी संशोधन की मांग की ताकि किसी उम्मीदवार को न सिर्फ तब अयोग्य ठहराया जा सके जब उसका सरकार के साथ अनुबंध चल रहा हो, बल्कि तब भी अयोग्य ठहराया जा सके जब उसके परिवार के किसी सदस्य का भी इसी तरह का वित्तीय समझौता हो। उच्चतम न्यायालय केे समक्ष दायर हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरुरी है कि मतदाताओं को उम्मीदवारों और उनके परिवार के सदस्यों की आय के स्रोत का पता चले। मौजूदा कानून के तहत किसी उम्मीदवार को अपना, अपनी पत्नी और तीन आश्रितों की संपत्तियों और देनदारियों का नामांकन पत्र भरने के दौरान फार्म 26 में खुलासा करना होता है, लेकिन आय के स्रोत का खुलासा नहीं करना होता है।

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