रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि अगर चीन लेह, जोशीमठ (उत्तराखंड) के उत्तरी हिस्से, नेपाल, NEFA और नॉर्थ असम में कब्जा करने की तैयारी में था। 1963 के सीआईए और यूएसआईबी के मेमोरेंडम में कहा गया है कि बर्मा (म्यामांर) सरकार भारत पर हमला करने जा रहीं चीनी फौजों का विरोध नहीं करने वाली थीं। बल्कि उन्हें ट्रांसपोर्टेशन और हवाई पट्टी मुहैया कराने वालीं थीं। डीआईए की रिपोर्ट में ये भी लाहा गया है कि चीन का ऑपरेशन उसी स्थिति में बिगड़ता जब लॉजिस्टिक्स में कुछ बिगड़ाव होता या फिर मौसम साथ नहीं देता।
इस रिपोर्ट के मुताबिक म्यामांर भी चीन का साथ देने के लिए तैयार था और चीन म्यामांर के ही दो रास्तों- लेडो होते हुए कुनमिंग-डिब्रूगढ़ रोड और मांडले-इम्फाल होते हुए कुनमिंग-तेजपुर रोड के जरिए अटैक करने की तैयारी में था। 1962 की जंग के एक साल बाद सीआईए के डिप्टी डायरेक्टर रे क्लाइन ने तब प्रेसिडेंट रहे जॉन एफ कैनेडी के स्पेशल असिस्टेंट मैक्जॉर्ज बुंडी को बताया था कि चीन के भारतीय सीमा पर हमले की कई वजहें हैं। बुंडी ने लिखा था, ‘चीन एक लाख 20 हजार फौजों के साथ भारत पर हमला कर सकता है। इसके लिए वह छोटी सी वॉर्निंग देगा या बिल्कुल भी नहीं बताएगा।’ हालांकि रिपोर्ट में हवाई हमले के खतरे को कम बताया गया है। इसकी वजह हिमालय क्षेत्र में सही बेस नहीं मिलना बताया गया है।