विविधता को समानता में तब्दील नहीं किया जाना चाहिए: राष्ट्रपति

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फाइल फोटो।

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार(23 अक्टूबर) को कहा कि भारत को विविधता का जश्न मनाना चाहिए और इसे कृत्रिम तौर पर ‘समानता’ में तब्दील करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। मुखर्जी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था काफी तेज रफ्तार से बढ़ रही है। मुखर्जी ने कहा कि यह दुर्घटना या एक या दो साल की उपलब्धि नहीं है।’’

मुखर्जी ने ‘बापू गुजरात नॉलेज विलेज’ के एक कार्यक्रम में कहा कि ‘‘आज हमारे देश में सवा अरब लोग हैं। हमारे यहां 1800 बोलियां, दैनिक जीवन में 200 भाषाओं का इस्तेमाल होता है, सात धर्म हैं, तीन बड़े जातीय समूह हैं।’’ यह कॉलेज कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शंकर सिंह वाघेला चलाते हैं।

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उन्होंने कहा कि ‘‘यह हमारी सांस्कृतिक उदारता की वजह से संभव है। यह हमारी भावना की वजह से है कि हमें हमारी विविधता का जश्न मनाना चाहिए। हमें विविधता को हटाने और विविधता को समानता में तब्दील करने का कृत्रिम प्रयास नहीं करना चाहिए।’’ मुखर्जी ने कहा कि यह हमारे प्राचीन संतों, दार्शनिकों और नेताओं की शिक्षा है।

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उन्होंने कहा कि ‘‘अनेक संशयवादियों ने भारतीय संविधान निर्माताओं पर अपना संदेह जाहिर किया है कि यह एक गरीब, निरक्षर और बीमारी से ग्रस्त देश है। कैसे कोई बेहद आधुनिक संवैधानिक तंत्र वहां स्थापित किया जा सकता है।’’

उन्होंने कहा कि ‘‘(जवाहर लाल) नेहरू के मित्रों में से एक सर फ्रैंक जो बाद में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने उन्होंने कहा था कि संविधान आपका आदर्शवाद है। हालांकि, दो आम चुनाव सफलतापूर्वक कराए जाने के बाद उसी व्यक्ति ने कहा कि यह (संविधान) सामाजिक-आर्थिक कायाकल्प का सर्वाधिक महत्वपूर्ण, शानदार मैग्नाकार्टा (ब्रिटिश इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज) है।’’

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राष्ट्रपति ने कहा कि देश संविधान के जरिए सामाजिक-आर्थिक कायाकल्प की राह पर बढ़ चला है। उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद तेज रफ्तार से बढ़ रही है, जो सतत प्रयासों का परिणाम है।