हिंदुत्व की दोबारा व्याख्या करने से SC का इनकार, तीस्ता सीतलवाड़ ने दायर की थी याचिका

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हिंदु्त्व

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्‍व की दोबारा व्‍याख्‍या करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट के सात जजों की संवैधानिक बैंच ने यह फैसला लिया है। सामाजिक कार्यकर्ता तीस्‍ता सीतलवाड़ ने याचिका दायर कर दोबारा व्याख्‍या करने की अपील की थी। उन्‍होंने 21 साल पहले दिए गए फैसले की समीक्षा करने को कहा था। उनके अलावा शामसुल इस्लाम और दिलीप मंडल ने ‘‘राजनीति से धर्म को अलग करने’’ की मांग को लेकर वर्तमान सुनवाई में हस्तक्षेप के लिए आवेदन दायर किया। सुनवाई करने वाली पीठ में चीफ जस्टिस के साथ ही न्यायूमर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति एसए सोब्दे, न्यायमूर्ति एके गोयल, न्यायूमर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव शामिल थे। इससे पहले 1995 में उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा था कि हिंदुत्‍व जीवन जीने की शैली है। कोर्ट ने कहा था कि हिंदू कोई धर्म नहीं है।

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दिसंबर 1995 में जस्टिस जेएस वर्मा ने कहा था कि हिंदुत्‍व के नाम पर वोट मांगना जनप्रतिनिधित्‍व की धारा 126 के तहत गलत प्रक्रिया नहीं है।  कोर्ट ने बाल ठाकरे, मनोहर जोशी और आरवाई प्रभु जैसे नेताओं की अपील पर कहा था, ”हिंदुत्‍व को केवल हिंदू धर्म की मान्‍यताओं के आधार पर नहीं समझा जाना चाहिए। यह भारतीय लोगों के जीवन जीने की पद्धति है। यह हो सकता है कि इन शब्‍दों को भाषण में इसलिए शामिल किया जाता है ताकि धर्म निरपेक्षता का प्रचार हो।” इस फैसले के जरिए कोर्ट ने मनोहर जोशी के चुनाव को सही ठहराया था। जोशी ने प्रचार के दौरान कहा था कि महाराष्‍ट्र में पहला हिंदू राज्‍य बनेगा।

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