नोटबंदी की घातक मार, पैसों के लिए मजबूरन नसबंदी करा रहे लोग

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नोटबंदी

8 नवंबर को नोटबंदी के बाद देशभर में हडकंप मच गया। नोट बंदी के 19वें दिन व्यवस्था को दुरुस्त नहीं हो पाई। लोग इस वक्त नोटबंदी के बाद होने वाली परेशानी से जूझ रहे हैं। कैश की किल्लत के चलते अलीगढ़ में रहने वाले पूरन शर्मा ने नकद की कमी और जरूरतें पूरी करने की मजबूरी को देखते हुए अपनी नसबंदी करा ली। दरअसल नसबंदी कराने वाले पुरुष को जहां 2,000 रुपये मिलते हैं, वहीं ऐसा करवाने वाली महिला को 1,400 रुपये मिलते हैं। पूरन का कहना है कि उनके परिवार के पास खाने तक को पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने यह कदम उठाया। नवभारत टाइम्स के मुताबिक, पैसों के लिए नसबंदी का तरीका अपनाने वाले पूरन अकेले शख्स नहीं हैं, अलीगढ़ और आगरा जिलों में इस महीने नसबंदी करवाने वालों की संख्या में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है। माना जा रहा है कि 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा होने के बाद नसबंदी करवाने के मामलों में इतनी तेजी आई है।

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अलीगढ़ की बात करें, तो पिछले महीनों के मुकाबले नवंबर में यहां दोगुने लोगों ने नसबंदी करवाई। पिछले साल नवंबर में जहां कुल 92 लोगों ने नसबंदी कराई थी, वहीं इस नवंबर में अबतक 176 लोग नसबंदी करवा चुके हैं। यह महीना खत्म होने में अभी भी 4 दिन बाकी हैं। इसी तरह आगरा में भी पिछले नवंबर में जहां 450 लोगों ने नसबंदी करवाई थी, वहीं इस साल नवंबर में अब तक यहां 904 महिलाएं और 9 पुरुष नसबंदी करवा चुके हैं।

हालांकि स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि शायद ‘जागरूकता अभियानों’ के कारण नसबंदी के मामलों में वृद्धि हुई है, लेकिन अलीगढ़ के एक शख्स पूरन शर्मा का कहना है कि वह किसी जागरूकता अभियान के कारण नहीं, बल्कि पैसों के लिए नसबंदी कराने आए हैं।

पूरन को एक आशा कर्मचारी से पता चला था कि नसबंदी कराने के बदले सरकार की ओर से पैसे दिए जाते हैं। पूरन बताते हैं, ‘घर चलाने के लिए मुझे पैसों की सख्त जरूरत है। हमारे गांव में भी नकद नहीं है कि मैं किसी से उधार मांगकर काम चला सकूं। आशा में काम करने वाली दीदी ने मुझे नसबंदी के बदले मिलने वाले पैसों के बारे में बताया और मैंने व मेरी पत्नी ने यहां आने का फैसला किया।’

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पूरन एक दिहाड़ी मजदूर हैं। उनके परिवार में विकलांग पत्नी के अलावा 3 बच्चे भी हैं। अपने परिवार में वह अकेले कमाने वाले सदस्य हैं। पूरन का कहना है कि पिछले 3 हफ्ते से उन्हें काम नहीं मिल रहा है।

पूरन ने शनिवार को बताया, ‘मैं और मेरी पत्नी खैर स्थित सरकारी अस्पताल गए। मेरी पत्नी के विकलांग होने के कारण डॉक्टरों ने उसका ऑपरेशन नहीं किया। इसीलिए मैंने नसबंदी करवा ली। मुझे लगा कि जो पैसे मिलेंगे, उससे मैं कुछ दिनों तक अपने परिवार को खाना तो खिला सकूंगा। लेकिन मुझे अभी तक पैसा नहीं मिला है।’ खैर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉक्टर राहुल शर्मा ने बताया कि पूरन को पैसों की सख्त जरूरत थी और इसीलिए वह नसबंदी कराने आए। डॉक्टर शर्मा ने बताया, ‘चूंकि उनका परिवार पूरा हो चुका था और उन्हें पैसों की जरूरत थी, इसीलिए हमने उनकी नसबंदी कर देने का फैसला किया।’

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पूरन को अभी तक पैसे नहीं मिलने की बात पर डॉक्टर शर्मा ने बताया कि रुपया सीधे उनके बैंक खाते में डाल दिया जाएगा और इस काम में थोड़ा समय लगेगा।

आगरा के परिवार नियोजन विभाग में अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर शेर सिंह ने बताया कि अलीगढ़ में इस साल 2,272 लोगों ने नसबंदी करवाई है, जिनमें से 913 मामले केवल नवंबर के हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सर्दी के दौरान नसबंदी के मामलों में हल्की तेजी देखी जाती है क्योंकि लोग सोचते हैं कि ठंड में संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।

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