किस्सा ए हाल बाबरी के पैरोकार हाशिम अंसारी का

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बुधवार को बाबरी मस्जिद का मुख्य पैरोकार और अयोध्या का गांधी चल बसा। हाशिम अंसारी एक ऐसा नाम जो कहता था “अगर हम मुक़दमा जीत गए तो भी मस्जिद निर्माण तब तक नहीं शुरू करेंगे, जब तक कि हिंदू बहुसंख्यक हमारे साथ नहीं आ जाते”। शायद यही वजह था कि लोग उन्हें अयोध्या का गांधी कहा करते थे। इन्हें शायद इनकी मौत का आभास हो चुका था इसलिए इन्होंने कुछ दिनों पहले ही कहा था कि “”मैं फ़ैसले का भी इंतज़ार कर रहा हूँ और मौत का भी….लेकिन यह चाहता हूँ मौत से पहले फ़ैसला देख लूँ।” एक बार उन्होंने यहां तक कहा था, “हमें शांति चाहिए देश में। ले जाओ बाबरी मस्जिद। हमें बाबरी मस्जिद नहीं, हमें शांति चाहिए।”
अंसारी राम जन्मभूमि मुद्दे के हल के लिए वह जीवन भर प्रयासरत रहे। हाशिम अयोध्या के उन कुछ चुनिंदा बचे हुए लोगों में से हैं जो लगातार 60 वर्षों से अपने धर्म और बाबरी मस्जिद के लिए संविधान और क़ानून के दायरे में रहते हुए अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं। अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी के महंत और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत ज्ञान दास के साथ मिलकर उन्होंने ही इस मामले में सुलह-समझौते की पहल शुरू की थी। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी वह समझौते को लेकर बातचीत का दौर चलाते रहे। इस बीच कुछ लोग उच्चतम न्यायालय चले गए। फिर भी उन्होंने अपना प्रयास नहीं छोड़ा। इसके अलावा उनका जीवन बड़ा ही सादगीपूर्ण था। अपने पुराने और जर्जर मकान में ही उन्होंने अभावग्रस्त जीवन जिया। समय-समय पर उन्हें तमाम प्रलोभन मिले, लेकिन वह डिगे नहीं। प्रलोभनों को उन्होंने ठुकरा दिया।
हाशिम अंसारी का नाम अयोध्या विवादित मामले से साल 1949 में ही जुड़ गया था। सन 1949 में जब विवादित मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखी गई, उस समय प्रशासन ने शांति व्यवस्था के लिए जिन लोगों को गिरफ़्तार किया, उनमे हाशिम भी शामिल थे।
हाशिम कहते हैं, “चूँकि मै सोशल (मेलजोल रखने वाला) हूँ इसलिए लोगों ने मुझसे मुक़दमा करने को कहा और इस तरह मैं बाबरी मस्जिद का पैरोकार हो गया।”
छह दिसंबर, 1992 के बलवे में बाहर से आए दंगाइयों ने उनका घर जला दिया, पर अयोध्या के हिंदुओं ने उन्हें और उनके परिवार को बचाया।
इसके बाद 18 दिसंबर 1961 को दूसरा मामला हाशिम अंसारी, हाजी फेंकू सहित नौ मुसलमानों की तरफ से मालिकाना हक के लिए फैजाबाद के सिविल कोर्ट में लाया गया।
अंसारी अयोध्या विवाद के राजनीतिकरण से नाराज रहते थे। वह प्रदेश के कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आजम खान के रवैये से भी असंतुष्ट रहते थे।
उन्होंने एक बार कहा था कि वह अब बाबरी मस्जिद मुकदमे की पैरवी नहीं करेंगे। इसकी पैरवी आजम खान करेंगे। हालांकि बाद में बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी के मनाने पर वह मुकदमे की पैरवी करने लगे थे।
राम जन्मभूमि विवाद में नेताओं की चांदी होते देख कुछ समय पहले उन्होंने कहा था, “अयोध्या में रामलला तिरपाल में रहें और नेताजी लोग राजमहलों में रहें! ” यही नहीं आगे भी बोले, “तिरपाल में रामलला अब बर्दाश्त नहीं हैं. अयोध्या पर हो चुकी जितनी सियासत होनी थी, अब तो बस यही चाहता हूं कि रामलला जल्द से जल्द आजाद हों।”

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