राजनीति से दूर रहें राज्यपाल – सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली: अरूणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बहाल करने का आदेश देते हुए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसी चुनी हुई सरकार के पास सदन में बहुमत होता है तो किसी राज्यपाल को किसी ‘राजनीतिक झंझट’ में खुद को नहीं उलझाना चाहिए और न ही कोई ‘व्यक्तिगत फैसला’ करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल जनता की ओर से चुने गए प्रतिनिधियों के ‘श्रेष्ठतर अधिकारी’ नहीं हो सकते और जब तक विधानसभा में बहुमत प्राप्त सरकार के जरिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया चल रही है, तब तक राज्यपाल की तरफ से दखल नहीं किया जा सकता।

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सर्वसम्मति से दिए गए 331 पन्ने के ऐतिहासिक फैसले में न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल को किसी राजनीतिक खरीद-फरोख्त और घृणित तिकड़मों से दूर रहना चाहिए और राज्य विधानमंडल के ‘लोकपाल’ के तौर पर काम करने से परहेज करना चाहिए।

न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि जब मुख्यमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद के पास सदन में बहुमत होता है तो अनुच्छेद 174 के तहत राज्यपाल को प्राप्त सदन का सत्र बुलाने, सत्रावसान करने और सदन को भंग करने के अधिकार का इस्तेमाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से करना चाहिए और यह बाध्यकारी है। दूसरी ओर, न्यायमूर्ति लोकुर ने आज इसी मामले से जुड़े अपने फैसले में कहा कि अरूणाचल प्रदेश विधानसभा के अयोग्य करार दिए जा चुके डिप्टी स्पीकर के पास उनके सहित कांग्रेस के 14 बागी विधायकों को अयोग्य करार देने के स्पीकर के फैसले को दरकिनार करने का ‘कोई अधिकार नहीं’ था।

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न्यायमूर्ति लोकुर ने न्यायमूर्ति खेहर के फैसले से सहमति तो जाहिर की, लेकिन अपना एक अलग फैसला लिखा। अपने फैसले में न्यायमूर्ति लोकुर ने उन्हीं निष्कर्षें पर पहुंचने के लिए कुछ अलग और अतिरिक्त कारण बताए।
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि संविधान की 10वीं अनुसूची के मुताबिक डिप्टी स्पीकर को स्पीकर के आदेश से छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है।

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