जूनियर महिला वकील सीनियर पर निर्भर करती हैं।
न्यायपालिका और कचहरी में होने वाला यौन शोषण दूसरे सरकारी कार्यालयों में यौन शोषण से अलग है। इसे समझाते हुए इंदिरा जयसिंह ने कहा कि अगर किसी सरकारी महिला कर्मचारी का यौन शोषण होता है तो सरकार को उसकी शिकायत सुननी ही पड़ती है लेकिन वकालत स्वरोजगार है। ये असंगठित क्षेत्र की तरह है। जूनियर महिला वकील सीनियर पर निर्भर होती है। इसलिए महिला वकील को बस खुद का सहारा होता है। उसके पास नियोक्ता का संरक्षण नहीं होता। क्या लैंगिक भेदभाव का असर अदालती की कार्यवाही में भी पड़ता है? इस पर इंदिरा जयसिंह कहती हैं कि जब उनके साथ कोई पुरुष वकील होता है तो अक्सर जज उससे पहले बोलने के लिए कहते हैं, और जब उनके विपक्ष में कोई पुरुष वकील होता है तो जज उससे पहले के लिए बोलने के लिए कहते हैं। इंदिरा जयसिंह मानती हैं कि न्यायपालिका में ऊपर से नीचे तक पितृसत्तात्मक विचार जड़ जमाए हुए हैं। हालांकि वो मानती हैं कि निचली अदालतों में आने वाले युवा जज इस मामले में बेहतर नजरिया रखते हैं।
भारतीय अदालतों में महिला जजों की संख्या कम होने पर इंदिरा जयसिंह कहती हैं कि इसकी असल वजह ये है कि महिला वकीलों का गुट नहीं है। अगर उनकी योग्यता को देखते हुए सही समय पर मौका दिया जाए तो कई महिला वकील जज बन सकती हैं। इंदिरा जयसिंह मानती हैं कि न्यायपालिका में महिला जजों की संख्या बढ़ाने के लिए अफरमेटिव एक्शन की जरूरत है। वो कहती हैं कि अगर एक पुरुष और एक महिला की योग्यता समान हो तो महिला को जज बनने का मौका पहले दिया जाना चाहिए। उनका मानना है कि अगर दफ्तरों में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व रहेगा तो कामकाज ज्यादा लोकतांत्रिक होगा।