मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयोग के सदस्यों की मौजूदा नियुक्ति प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाया है। कोर्ट ने कहा, ‘निर्वाचन आयोग पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की बड़ी जिम्मेदारी है, इसलिए जरूरी है कि नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी हो और इसके लिए उचित कानून और नियम हो। संसद ने अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है। अगर संसद ऐसा नही करती है तो क्या अदालत को दख़ल नही देना चाहिये।’
अपनी ऑब्ज़र्वेशन में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा, ‘हालांकि अभी तक चुनाव आयुक्त, मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पदों पर उन बेहतर लोगों की नियुक्ति हुई है, जिनकी निष्ठा सन्देह से परे रही है। लेकिन नियुक्ति प्रकिया को पारदर्शी बनाने के लिए उचित कानून/नियम का होना जरूरी है।’ कोर्ट ने सरकार को उचित प्रस्ताव के साथ आने के लिए दो महीने का वक्त दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दी है। जिसमें केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वह मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के पद के लिए नामों की सिफारिश करने के लिए एक तटस्थ और स्वतंत्र चयन समिति का गठन करे।
अभी तक प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर राष्ट्रपति मुख्य निर्वाचन आयुक्त और सदस्यों की नियुक्ति करते रहे हैं, यानि अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव आयोग जैसी स्वतंत्र संस्था में नियुक्ति की प्रक्रिया सरकार के हाथों में है।
इससे पहले लॉ कमीशन और प्रशासनिक सुधार आयोग भी चुनाव आयोग में नियुक्ति के लिए निष्पक्ष कमिटि की सिफारिश कर चुके हैं। याचिका में अदालत से दख़ल देने की मांग की गई थी।