ये 11 यूनिट देश के अलग-अलग हिस्सों में तैनात रहती हैं। प्रशिक्षित यूनिट में कम उम्र के ही जवानों की भर्ती की जाती है और हर रेजीमेंट जवान-अधिकारी स्वेच्छा से इस यूनिट में हिस्सा ले सकते हैं। लेकिन इस यूनिट का प्रोबोशेन पीरियड ही इतना टफ होता है कि 90 प्रतिशत जवान बाहर हो जाते है। बाकी 10 प्रतिशत सबसे बेहतर होते हैं। स्पेशल फोर्स यूनिट का करीब तीन महीने का प्रोबेशन पीरियड होता है। इनकी ट्रैनिंग बेलगाम, आगरा और नाहन (हिमाचल) मे होती है। वहां स्पेशल वेपन, गोला-बारुद, नाइट ऑपरेशन की खास तैयारी कराई जाती है। इनका मोटो होता है ‘हमेशा ट्रेन्ड हमेशा तैयार’। इनका वॉर-क्राई ‘बलिदान’ है।
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आजकल स्पेशल फोर्स यूनिट यूनिट खासतौर से जम्मू-कश्मीर में ऑपरेशन करती है जब कभी आतंकी किसी घर या फिर किसी इलाके में छिपे होते हैं। इसकी खास वजह ये है कि इन कमांडो के इस्तेमाल करने से सेना को कम हानि होती है। ये अपना ऑपरेशन अधिकतर रात के अंधेरे और उजाला होने के समय करती हैं। माना जाता है कि उस समय दुश्मन गहरी नींद में सो रहा होता है।
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जैसे ही हमला होता है दुश्मन हड़बड़ा जाता है। किसी के कुछ समझने से पहले ही स्पेशल फोर्स यूनिट कमांडो अपने काम को अंजाम दे चुके होते हैं। जैसा कि पाकिस्तानी सीमा में स्पेशल फोर्स के कमांडो करके आए है। अपने ऑपरेशन पूरा होने के बाद ये उतनी ही जल्दी से दुश्मन के क्षेत्र से बाहर भी आ जाते हैं।































































