दिल्ली
संसद की एक समिति ने सुझाव दिया है कि कोकिंग कोल पर ढाई प्रतिशत आयात शुल्क और 400 रपये प्रति टन के स्वच्छ उर्जा अधिभार को समाप्त कर दिया जाना चाहिये क्योंकि इन नियमों की वजह से घरेलू इस्पात कंपनियों की प्रतिस्पर्धा क्षमता प्रभावित होती है।
राकेश सिंह की अध्यक्षता वाली कोयला एवं इस्पात पर संसद की स्थायी समिति ने सुझाव दिया कि भारतीय इस्पात कंपनियों द्वारा शोध एवं विकास पर उनके कुल बिक्री कारोबार का मात्र 0.05 से 0.5 प्रतिशत तक खर्च किया जाता है। चीन, जापान और दक्षिण कोरिया में एक से दो प्रतिशत खर्च के मुकाबले यह कम है।
समिति ने पाया कि चीन, जापान और कोरिया की तुलना में भारत में बिजली की मौजूदा प्रति किलोवाट प्रति घंटा की दरों के चलते भारतीय कंपनियों को 800 से 900 रपये प्रति टन का नुकसान उठाना पड़ता है।
समिति ने अपनी रपट में भारतीय इस्पात उद्योग पर लगाए जाने वाले जिन कतिपय शुल्कों, अधिभारों इत्यादि का जिक्र किया है उनमें जिला खनिज कोष :डीएमएफ:, राष्ट्रीय खनिज विस्तार न्यास (एनएमईटी) के लिए लगाए जाने वाले अधिभार, कोकिंग कोल जैसे कच्चे माल पर आयात शुल्क और स्वच्छ उर्जा अधिभार आदि शामिल हैं।
इस्पात मंत्रालय चाहता है कि कोकिंग कोल पर स्वच्छ उर्जा उपकर और आयात शुल्क समाप्त किया जाए क्योंकि देश में 90 प्रतिशत कोकिंग कोल का आयात होता है क्योंकि देश के अंदर इसकी कमी है। कोकिंग कोल से राख और धुंआ कम होता है।
समिति ने सिफारिश की है कि मंत्रालय इस मुद्दे को अधिकारियों और संबंद्ध राज्यों के साथ उच्च स्तर पर ले जाए एवं उन पर आयात शुल्क एवं स्वच्छ उर्जा अधिभार को हटाने का दबाव बनाए।
इसके अतिरिक्त समिति ने तकनीक का प्रयोग करते हुए लौह अयस्क का बेहतर उपयोग करने की जरूरत पर भी बल दिया।