ED और खुफिया विभाग (IB), दोनों ही विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस पूरे लेनदेन में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) के एक हवाला डीलर सुल्तान अहमद ने बिचौलिए की भूमिका निभाई। IB के एक सूत्र ने बताया, ‘साल 2012 में सुल्तान अहमद की दुबई में जाकिर नाइक से मुलाकात हुई। उसके बाद से ही नाइक को ब्रिटेन और कुछ अफ्रीकी देशों में कई स्रोतों से फंड मिलने लगा। हमें शक है कि दाऊद के गिरोह से जुड़े कुछ लोग जाकिर के NGO में हवाला के जरिये यह पैसा भेज रहे थे।’
IB के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उनकी जांच में फिलहाल कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली है, जिससे किसी निर्णायक नतीजे पर पहुंचा जा सके, लेकिन अभी तक हुई जांच से लगता है कि पाकिस्तान में जाकिर के संपर्क और वित्तीय हित, दोनों हैं। सूत्रों के मुताबिक, गजदार से हुई पूछताछ में पता चला है कि IRF के खातों में पैसा आने के बाद उसे कई जगहों पर भेजा जाता था। ED के मुताबिक, IRF को मिल रहे फंड के स्रोत को छुपाने के लिए गजदार ने कई फर्जी कंपनियां बनाईं थीं। ED के वकील हितेन वेनेगावकर ने बताया, ‘गजदार कम से कम 6 कंपनियों का निदेशक था। इनमें से 4 कंपनियां भारत की हैं और दो विदेशी हैं। इनमें से एक कंपनी जाकिर के भाषणों के संपादन और प्रसारण का काम करती थी।’
बताया जाता है कि सऊदी के कई प्रभावशाली लोगों के साथ भी जाकिर के संबंध हैं। इसपर भी आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों की नजर है। IB के एक सूत्र ने बताया, ‘IRF की प्रचार सामग्री को सऊदी स्थित दारुस्सलम पब्लिकेशन में छापा जाता था।’































































