15 अगस्त के जाने के बाद भी कश्मीर में आजादी का गूंज नहीं है, 39 दिन से चल रहा कर्फ्यू अभी भी बरकरार है, और इस दौरान अभी तक 65 जानें जा चुकी हैं। कश्मीर में एक दिन के लिए भी कर्फ्यू नहीं टूटा। संभवत: ये देश का सबसे लंबा कर्फ्यू है। सुत्रों के अनुसार 2010 में भी हिंसा चार महीने चली थी, लेकिन कई बार बीच में हटता रहा। हालात इस कदर बिगड़ चूके हैं कि अलगावादी बुजुर्गों के साथ हाथा-पाई करने को उतारू हो जाते हैं। लोगो के चेहरे गुस्से से, कहीं बेबस तो कहीं खौफ से भरे हुए हैं।
अगर बात करें डाउन टाउन का महाराजगंज कश्मीर के सबसे बड़े बाजार की तो। यहां के बंद दुकानों के बाहर बैठे बुजुर्ग बताते हैं कि 90 के दशक से ही कर्फ्यू यहां की जिंदगी का हिस्सा रहा है। कर्फ्यू और क्रैकडाउन पहले भी होते थे। कोई शुक्रवार ऐसा नहीं जब यहां पत्थरबाजी न हो। लेकिन इन लड़कों को इतना बेकाबू कभी नहीं देखा।
मीडिया के पूछताछ के दौरान जब उनसे पूछा कि पत्थर फेंकने वालों को आप समझाते क्यों नहीं? तो 65 साल के एक बुजुर्ग बोले‘हम उन्हें रोकते हैं तो वो हमें ही थप्पड़ मारते हैं। ये दूसरे मोहल्लों से हमारे इलाके में आकर सिक्युरिटी वालों पर पत्थर फेंकते हैं। हम तो इन्हें पहचान भी नहीं पाते। ये चेहरे पर कपड़ा बांधकर हुडदंग करते हैं। ”मस्जिदों से लोगों को प्रदर्शन में आने की धमकियां देते हैं। घरों के दरवाजे आधी रात ठोककर कहते हैं सड़क पर निकलो और नारे लगाओ।” उन्होने कहा पत्थरबाजी यहां पेशा बन चुकी है। ये डाउनटाउन वही इलाका है जहां से घाटी में आतंकवाद शुरू हुआ।
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सूत्रों के मुताबिक, पुलिस की गिरफ्त में आए कुछ पत्थरबाजों ने खुलासा किया कि कुछ लड़के चरस और अफीम, ड्रग्स के डोज के बदले भी पत्थरबाजी करते हैं। पत्थरबाजों का हर मोहल्ले का अपना हेड है, जो लड़कों को पसै देता है। हर दिन और इलाके में पत्थरबाजी का अलग-अलग रेट है। पूरे दिन के अलग रेट, जुमे के अलग रेट। पाकिस्तान का झंडा लहराने के ज्यादा पसै मिलते हैं। इन्होंने अपना एसोसिएशन भी बना रखा है। यही एसोसिएशन बयान जारी कर धमकियां देता है। हाल में लड़कियों को स्कूटी चलाने पर स्कूटी समेत जलाने की धमकी भी इन्हीं लोगों ने दी थी।