प्रभाकर ने बॉलीवुड में जगह बनाने के लिए बहुत हाथ-पांव मारे। मनोज वाजपेयी के पिता की पैरवी वाली चिट्ठी लेकर वे मुबंई पहुंचे लेकिन काम बन नहीं पाया।
1997 में वे कोस्टारिका पहुंच गए। वहां पढ़ाई की और फिर कारोबार में हाथ आजमाया लेकिन नाकामियों और संघर्ष का सिलसिला जारी रहा।
प्रभाकर के सफर की तुलना किसी रोलर कोस्टर से की जा सकती है जिसमें ऊपर-नीचे जाने का सिलसिला बना रहता है।
उन्होंने बताया, “मेरी फ़िल्म भी एक रोलर कोस्टर की तरह ऊपर नीचे जाती है। कोस्टा रिका और इस इलाक़े में कभी भी एक्शन फ़िल्म नहीं बनी थी। शुरू से मैं बॉलीवुड में कुछ करना चाहता था। वहां भी मुंबई में मैंने कुछ कोशिश की थी। मौका नहीं मिलने पर मैं यहां आ गया था।”
उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों का लातिन अमरीका में वितरण के काम में भी हाथ आजमाया।