भारत में मानव तस्करी में 60 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, नाकाफी साबित हो रहे हैं कानून

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अगर 2010 से 2014 के बीच मानव तस्करी के मामले देखें तो इनमें 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसका मतलब हर दिन 15 भारतीयों की तस्करी होती है।भारत में बढ़ती मानव तस्करी पर लगाम लगाने के लिए बनाए गए नए कानून की छह कारण से आलोचना हो रही है।

पिछले दो सालों में जहां बच्चियों की तस्करी के मामले में 14 गुना बढ़ोतरी हुई है, वहीं महिलाओं और लड़कियो की हिस्सेदारी 76% रही है। पिछले कुछ सालों में यौन गुलामी, अंग तस्करी, भीख मांगने के लिए और बंधुआ मजदूरी के लिए मानव तस्करी के मामले बहुत बढ़ोतरी हुई है। मानव तस्करी को रोकने के लिए तैयार किए गए नए विधेयक में कई खामियां हैं । इस विधेयक को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संसद में पेश किया जाना है। जानकार बताते हैं कि इस विधेयक मे निमलिखित खामियां हैं-

  1. विधेयक मसौदे में तस्करी को स्पष्ट रूप से  परिभाषित नहीं किया गया है।
  2. विधेयक का मसौदा पुनर्वास के तरीके के बारे में बात नहीं करता है और न ही इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों के संबंध में बात करता है।
  3. विधेयक का मसौदा बांग्लादेश, नेपाल और अन्य देशों की सीमा पार से पीड़ितों को लाने का उल्लेख नहीं करता है।
  4. यह स्पष्ट नहीं है कि किस प्रकार सरकार संगठित अपराध जांच एजेंसी की स्थापना करेगी, जैसा कि तस्करी के जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने यह स्थापना करने का आदेश दिया है।
  5. विधेयक मसौदा एक विशेष जांच एजेंसी के संबंध में बात करता है लेकिन इसकी संरचना, शक्तियां और कार्य स्पष्ट नहीं हैं।
  6. विधेयक मसौदा तस्करी विरोधी कोष के संबंध में बात करता है लेकिन धन किस पर खर्च किया जाएगा या पीड़ितों को मुआवजे देने का कोई ज़िक्र नहीं है।
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एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2010 से 2014 के बीच, मानव तस्करी के मामले 3,422 से बढ़ कर 5,486 हुए हैं, यानि कि 60 फीसदी की वृद्धि हुई है।

source: National Crime Records Bureau, 2014

यदि पिछले 5 वर्षों के आंकड़ों को देखा जाए तो मानव तस्करी के मामलों में से केवल 23% आरोपियों को दोषी ठहराया गया है। हॉवर्ड विशविध्यालय के एक अध्ध्यन के अनुसार तस्करी से लाये गए ज़्यादातर बच्चों का दुरा तस्करी का खतरा रहता है और साथ ही वहाँ से लाये गए अधिकांश लोग अवसाद, डायस्थिमीया और मानसिक रूप से पीड़ित होते हैं।

source: National Crime Records Bureau, 2014

इंडियास्पेंड से बातचीत में संजोग भारत के सह-संस्थापक रूप सेन ने बताया, “वर्तमान में अधिकांश केन्द्रों में करीब 100 से भी अधिक लड़कियां हैं, और वे सलाहकारों और मनोवैज्ञानिकों प्रदान करते हैं जो उन्हें इससे बाहर निकलने में मदद करते हैं।”

सेन कहते हैं, उद्हारण के तौर पर जब जांच अधिकारियों को राज्य की सीमाओं के पार के तस्कर को ट्रैक करते हैं, जांच और यात्रा की लागत चार साल तक के लिए प्रतिपूर्ति की जाती है, जो कई अधिकारियों के लिए हतोत्साह करनेवाली होती है।
खबर सोर्स- इंडिया स्पेंड