तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने जस्टिस चेलमेश्वर का समर्थन करते हुए कहा है कि, जजों के चयन के लिए सुप्रीम कोर्ट कलीजियम की कार्यवाही में पारदर्शिता और आम सहमति जरूरी है। तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने कलीजियम की बैठकों से दूर रहने के जस्टिस चेलमेश्वर के अभूतपूर्व फैसले पर यह बात कही। तीनों पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के अपने-अपने कार्यकाल में उन्हें कभी भी कलीजियम के सदस्यों के बीच आम सहमति बनाने में कोई समस्या नहीं हुई।
ये तीनों विचार के दायरे में आने वाले लोगों के गुणों-अवगुणों पर खुली और बिना लाग-लपेट के चर्चा में विश्वास रखते थे और इन्होंने कहा कि आम सहमति बनाने के बाद ही नामों की सिफारिश की जाती थी। अभी केरल के गवर्नर जस्टिस सतशिवम ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि पारदर्शिता और आम सहमति किसी भी चयन प्रक्रिया के अहम पहलू हैं। खासकर तब जब लोगों का चयन सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट्स के जजों के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए हुआ हो।
वहीं, जस्टिस लोढा ने कहा कि कलीजियम का सुचारू काम-काज दो बातों, संस्थान के प्रमुख (सीजेआई) और आम सहमति पाने के प्रयास, पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा, ‘आम सहमति बनाने में वक्त लगता है। कलीजियम के सामने कोई नाम रखने के लिए उनके अब तक के काम-काज, गुण और योग्यता को लेकर प्रत्येक संभव सूत्र से विस्तृत जानकारी जुटानी चाहिए। विचारों का खुला और बेबाक आदान-प्रदान होना चाहिए। अगर किसी खास नाम पर आम राय नहीं बन पा रही हो तो बहुमत के आधार पर उसकी सिफारिश नहीं की जानी चाहिए।’
जस्टिस चेलमेस्वर का कलीजियम में पारदर्शिता के अभाव के आरोप पर जस्टिस सतशिवम और लोढ़ा ने पारदर्शिता बढ़ाने के लिए उन नामों पर कलीजियम मेंबर्स के राय रिकॉर्ड करने की वकालत की जिन पर जजों के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए विचार हुआ। जस्टिस लोढा ने कहा, ‘कलीजियम के सदस्यों की राय पहले कभी रिकॉर्ड नहीं की गई क्योंकि हरेक सदस्य दूसरे पर विश्वास करते थे। वह एक-दूसरे पर भरोसा करते थे। लेकिन, मौजूदा हालात में पारदर्शिता बहुत जरूरी हो गई है।’
जस्टिस बालकृष्णन भी इस बात पर सहमत हैं कि नियुक्ति के लिए किसी भी नाम की सिफारिश करने से पहले पारदर्शिता और कलीजियम मेंबर्स के बीच आम राय होनी होनी चाहिए। लेकिन, वह विचार के दायरे में आने वाले व्यक्ति पर कलीजियम मेंबर्स के नजरिए को रिकॉर्ड करने के खिलाफ हैं।
जस्टिस बालकृष्णन ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में नियुक्ति को लेकर जिन लोगों पर भी विचार होता है, उनमें बहुत बड़ी संख्या हाई कोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीशों की होती है। कलीजियम के सदस्यों की राय किसी किसी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ हो सकती है और वे कलीजियम मीटिंग में अपनी राय व्यक्त करने को अधिकृत हैं। लेकिन, इसे रिकॉर्ड करने का मतलब किसी नजरिए को विश्वसनीयता प्रदान करना होगा। बड़ी बात तो यह है कि अगर ये रिकॉर्ड्स लीक हो गए तो उस हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के सामने बड़ी मुश्किल स्थिति पैदा हो जाएगी। किसी पदस्थापित चीफ जस्टिस के खिलाफ कलीजियम मेंबर्स के असत्यापित आरोपों की रिकॉर्डिंग कैसे कर सकते हैं, वह भी उस चीफ जस्टिस को अपने ऊपर लग रहे आरोपों का खंडन करने का मौका दिए बगैर? यह नैचरल जस्टिस के सिद्धातों के भी खिलाफ होगा।’
जस्टिस बालकृष्णन ने कहा, ‘कलीजियम कोई डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमिटी नहीं है जो किसी व्यक्ति के खिलाफ लगे हरेक आरोप को रिकॉर्ड करे। बल्कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के जिम्मेदार वरिष्ठतम जज होते हैं। अगर किसी नाम पर आम राय नहीं बने तो उसकी नियुक्ति की सिफारिश कभी नहीं होनी चाहिए।’
लेकिन, जस्टिस सतशिवम और जस्टिस लोढा बैठकों की रिकॉर्डिंग को लेकर जस्टिस बालकृष्णन से अलग राय रखते हैं। जस्टिस सतशिवम ने कहा, ‘ट्रांसपैरंसी सिस्टम की सेहत के लिए महत्वपूर्ण है। वह चाहे कलीजियम हो या कोई दूसरी चयन प्रक्रिया। इसलिए, कलीजियम के सदस्यों की राय को रिकॉर्ड करना जरूरी है। जिस व्यक्ति के नाम पर हरेक सदस्य का विचार जरूर रिकॉर्ड होना चाहिए और सिफारिश करते वक्त इसे बाकी रिकॉर्ड के साथ सरकार को भेज देना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि, पारदर्शिता से ज्यादा जरूरी है कि जिस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश की जा रही है, उस पर आम राय बने। अगर किसी नाम पर एक भी वैध असंतोष जाहिर होता है तो उस व्यक्ति को जज के रूप में नियुक्त किए जाने की सिफारिश नहीं होना चाहिए।