भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में इस साल सदस्यता मिलने की संभावना लगभग समाप्त हो गई है। वियना में एनएसजी देशों की बैठक बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गई है जिसके साथ ही भारत की उम्मीदें भी समाप्त हो गई। हालांकि इस मामले के जानकारों का कहना है कि यह भारत के एनएसजी में जाने की प्रक्रिया 2017 में भी जारी रहेगी। भारत और अमेरिका बराक ओबामा के राष्ट्रपति कार्यकाल के पूरा होने से पहले इस प्रक्रिया के पूरा होने का प्रयास कर रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन के अनुसार इस साल के अंत तक यह प्रकिया पूरी हो जाएगी। सूत्रों के अनुसार 11 नवंबर को वियना में हुई बैठक भी उसी तरह से समाप्त हुई जिस तरह से सिओल बैठक हुई थी। हालांकि इस बार चीन की मांग- परमाणु अप्रसार संधि में शामिल नहीं होने वाले देशों के लिए मानक तय किए जाए, पर विचार किया गया।
भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से अभी इस मामले में कोई जवाब नहीं आया है। इस साल जून में सिओल में बैठक के बाद भारत के एनएसजी सदस्यता मिलने की उम्मीदें बढ़ी थीं। इस बैठक में अर्जेंटीना के कूटनीतिज्ञ राफेल ग्रोसी को भारत की एप्लीकेशनल पर सहमति बनाने के लिए नियुक्त किया गया था। हालांकि चीन ने इस नियुक्ति को मानने से इनकार कर दिया था। चीन लगातार भारत को एनएसजी में शामिल किए जाने का विरोध कर रहा है। भारत ने भी कहा है कि चीन एकमात्र देश है जिसने उसका विरोध किया। हालांकि इसके बाद चीन के न्यूक्लियर नेगोशिएटर वांग कुन और भारत के निशःस्त्रीकरण के लिए संयुक्त सचिव अमनदीप सिंह गिल के बीच 13 सितम्बर और 31 अक्टूबर को बैठक हुई। इन बैठकों के बाद चीन का क्या रूख है यह अभी साफ होना बाकी है लेकिन चीन थोड़ा नरम पड़ा है।
चीन ने भारत के प्रवेश को इस आधार पर बाधित किया था कि उसने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। चीन ने इस समूह में प्रवेश को लेकर भारत एवं पाकिस्तान के साथ दो दौर की बातचीत की है। पाकिस्तान की तुलना में भारत को उसके अप्रसार रिकॉर्ड के कारण अमेरिका तथा अधिकतर एनएसजी सदस्यों का समर्थन हासिल है। पाकिस्तान पर पूर्व में परमाणु अप्रसार को लेकर गंभीर आरोप लग चुके हैं विशेषकर उसके परमाणु वैज्ञानिक डा. ए क्यू खान को लेकर। गेंग ने कहा कि वियना बैठक में एनएसजी सदस्यों ने एनएसजी में गैर एनपीटी सदस्यों के प्रवेश को लेकर तकनीकी, कानूनी एवं राजनीतिक मामलों पर चर्चा की।