उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि मुस्लिमों की तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की परंपराएं ‘बहुत महत्वपूर्ण’ मुद्दे हैं और इससे ‘भावनाएं’ जुड़ी हैं। इन परंपराओं को चुनौती देने वाली याचिका पर संविधान पीठ 11 मई से सुनवाई करेगी। ऐसा पहली बार होगा जब गर्मी की छुट्टियों में सुप्रीम कोर्ट के कम से कम 15 जज महत्वपूर्ण संवैधानिक महत्व के तीन मामलों की सुनवाई करेंगे।
चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति जेएस खेहर ने बताया कि ग्रीष्मावकाश में तीन अलग-अलग संविधान पीठ के गठन को मंजूरी दे दी गई है। चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि अगर इन मामलों की सुनवाई अब न हो सकी तो वर्षों तक इन मसलों का निपटारा नहीं हो पाएगा।
केंद्र सरकार का तर्क
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी में पूछा है कि एक ही बार में तीन तलाक (तलाके-बिद्दत), निकाह हलाला और बहुविवाह प्रथा को भारतीय संविधान में किस तरह संरक्षण प्राप्त है? मुसलमानों में इस तरह के चलन को संविधान में दी गई धार्मिक आजादी से जोड़कर देखा जा सकता है या नहीं। मुसलमानों के पर्सनल लॉ को लेकर मोदी सरकार ने चार सवाल सुप्रीम कोर्ट को सौंपे हैं। सरकार ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि इन मुद्दों पर गहराई से चर्चा की जाए। लैंगिक समानता और गरिमापूर्ण जीवन जीने के संवैधानिक अधिकार के दायरे में इन सवालों के जवाब ढूंढे जाएं। आजाद भारत में पहली बार मुसलमानों के पर्सनल लॉ को अदालत में चुनौती दी गई है।
केन्द्र ने पिछले साल सात अक्तूबर को उच्चतम न्यायालय में मुस्लिमों में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की परंपरा का विरोध किया था और लैंगिक समानता एवं धर्मनिरपेक्षता जैसे आधारों पर फिर से गौर करने का समर्थन किया था।
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