तीन तलाक मामला: सुप्रीम कोर्ट के 15 जज नहीं लेंगे गर्मियों की छुट्टी, 11 मई से रोजाना होगी सुनवाई

0
2 of 2Next
Use your ← → (arrow) keys to browse

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा, कोर्ट के दायरे में नहीं आते ये मामले

इससे पहले 27 मार्च को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह की प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाएं विचारयोग्य नहीं हैं क्योंकि ये मुद्दे न्यायपालिका के दायरे में नहीं आते हैं।

जानें क्या हैे ये प्रथायें-

क्या है हलाला : अगर कोई तलाकशुदा महिला अपने पूर्व पति से पुन: शादी करना चाहे तो वह तभी मुमकिन है जब वह किसी अन्य व्यक्ति से शादी कर चुकी हो और दूसरा पति भी उसे तलाक दे चुका हो या वह मर चुका हो। इसी के साथ वह इसकी इद्दत पूरी कर चुकी हो। (तलाक की सूरत में तीन माह 10 दिन और मरने की सूरत में चार माह 10 दिन) तो पूर्व पति से फिर से निकाह जायज होगा।

इसे भी पढ़िए :  कोयला घोटाला मामला: CBI के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा के खिलाफ जारी रहेगी SIT जांच-सुप्रीम कोर्ट

बहु विवाह : अगर पति एक से ज्यादा शादी करना चाहे तो वह अपनी मौजूदा पत्नी से इजाजत ले ले और ऐसे व्यक्ति की आमदनी और जायदाद या संपत्ति (चल अचल) इतनी हो कि वह सभी पत्नियों को अच्छी जिंदगी देने में सक्षम हो। इसके अलावा उसे सभी से बराबरी का बर्ताव और इंसाफ करना लाजमी होगा। ऐसी सूरत में व्यक्ति एक साथ चार पत्नियां रख सकता है।

तीन तलाक : एक जगह पर पत्नी को तीन बार तलाक-तलाक-तलाक कह देने से या लिख कर भेजे जाने से तलाक तो हो जाता है लेकिन यह इस्लाम के सिर्फ हनफी मसलक (स्कूल ऑफ थॉट) में ही मान्य है। जबकि दूसरे कई मसलकों (स्कूल ऑफ थॉट्स) में एक ही बार या एक जगह कितनी बार भी तलाक-तलाक कहा जाए उसे सिर्फ एक बार दी गई तलाक माना जाता है।

इसे भी पढ़िए :  जाकिर नाईक NGO मामले में केंद्र ने निलंबित अधिकारियों को फिर से बहाल किया

तलाक का तरीका : इस्लाम में तलाक का तरीका यह है कि अगर तलाक देने के बाद तीन माह तक पति का तलाक देने का इरादा नहीं बदलता तभी तलाक मान्य होगा। अगर इस बीच पति-पत्नी में जिंदगी साथ गुजारने की रजामंदी हो जाती है तो तलाक नहीं माना जाएगा।

इस्लाम में तलाक बदतरीन चीज : इस्लाम में तलाक को सर्वाधिक बदतरीन चीज माना गया है। क्योंकि निकाह इस्लाम में पति-पत्नी के बीच एक कांट्रेक्ट है। अगर दोनों किसी कारणवश अपने इस कांट्रेक्ट को कायम रखने में सहज नहीं रह पाते और किसी भी सूरत में दोनों साथ जिंदगी नहीं गुजार सकते तो समस्या के अंतिम हल के तौर पर तलाक को जायज माना गया है।

खुला ले सकती है महिला

महिला भी तलाक दे सकती है जिसे खुला कहा जाता है। महिला अगर पति के साथ रहना नहीं चाहती तो वह, ‘मैं तुम से खुला लेती हूं’ कहकर पति से अलग हो सकती है। इस सूरत में उसे अपनी मेहर की रकम गंवानी होगी।

इसे भी पढ़िए :  बड़ा खुलासा: कश्मीर में पिछले साल 88 नौजवान बने आतंकवादी

किन हालात में दी गई थी एक से ज्यादा शादियों की इजाजत

इस्लाम फैलने के शुरुआती दौर में जब विभिन्न आपदाओं और विपदाओं में मरने या शहीद होने के कारण पुरुषों की तादाद कम हो गई और विधवाओं और यतीम बच्चों की परवरिश की समस्या पैदा हो गई तो उस वक्त विधवाओं और यतीम बच्चों के बेहतर लालन पालन के मद्देनजर यह व्यवस्था बनाई गई। इसका एक उद्देश्य यह भी था कि इन बच्चों और महिलाओं की जान-माल की ठीक से हिफाजत हो सके और बच्चों और महिलाओं को शोषण से बचाया जा सके।

2 of 2Next
Use your ← → (arrow) keys to browse