ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक की व्यवस्था को खत्म करने से इनकार करते हुए इस सिलसिले में एक आचार संहिता जारी कर कहा कि बिना शरई कारणों के तीन तलाक देने वाले मर्दों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए। बोर्ड ने बाबरी विध्वंस मामले में आपसी बातचीत से हल निकालने की उच्चतम न्यायालय की पेशकश को भी नामंजूर करते हुए तय किया है कि इस मामले में बोर्ड अदालत के फैसले को ही मानेगा। बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने संस्था की कार्यकारिणी की बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इस्लामी शरीयत में मर्द और औरत दोनों को बराबर के अधिकार दिये गये हैं और महिलाओं को वे हुकूक दिलाना हम सबकी जिम्मेदारी है। उन्होंने एक सवाल पर कहा कि बोर्ड किसी व्यक्ति द्वारा एक ही बार में तीन तलाक देने की स्थिति में तलाक मुकम्मल होने की व्यवस्था पर कायम है लेकिन बोर्ड ने फैसला किया है कि अगर कोई शख्स किसी शरई वजह के बगैर अपनी बीवी को तीन तलाक देता है तो उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाए।
रहमानी ने बताया कि बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि बोर्ड बाबरी मस्जिद के सिलसिले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को ही स्वीकार करेगा। वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने इस मौके पर कहा कि बोर्ड ने तलाक के सिलसिले में एक ‘कोड आफ कंडक्ट’ (आचार संहिता) जारी की है और तलाक जैसे मामलों में उसी पर अमल किया जाए। उन्होंने बताया कि बोर्ड ने अपने पारित प्रस्ताव में तमाम उलमा और मस्जिदों के इमामों से अपील की है कि वे इस आचार संहिता को जुमे की नमाज के खुतबे (भाषण) में नमाजियों को जरूर सुनाएं और उस पर अमल करने पर जोर दें।
बोर्ड की महिला शाखा की प्रमुख डॉक्टर असमां जहरा ने इस मौके पर कहा कि मुस्लिम महिलाओं के तलाक का मामला धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक मसला है। भारत के पूरे समाज में महिलाओं के मुद्दे एक ही जैसे हैं। ऐसे में सिर्फ मुस्लिम कानून को ही निशाना नहीं बनाया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि बोर्ड ने तलाक के मुद्दों को लेकर हेल्पलाइन नम्बर 18001028426 जारी किया है, जिस पर अब तक 15500 मामलों की सुनवाई हुई है