ये आंकड़े पढ़कर आप किसान आंदोलन की वजह समझ जाएंगे

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योग दिवस
प्रतिकात्मक फोटो

नई दिल्ली : 2016-17 की सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार देश के 17 राज्यों में किसान परिवारों की औसत आय सालाना 20000 रुपए है जो देश के औसत आय के लगभग आधी है। मध्यप्रदेश के किसान अपनी मांगों को लेकर लगातार अड़े हुए हैं। देश में लगातार आत्महत्या कर रहे किसानों का दर्द समझने के लिए आपको कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा की इस बात को समझना होगा। उन्होंने अपने एक लेख में किसानों की आय को इस तरह समझाया है। उनके अनुसार अस्सी के दशक में गेहूं एक रुपए किलो, दूध एक रुपए लीटर और देसी घी करीब 5 रुपए लीटर था। उस वक्त चपरासी की तनख्वाह 80 रुपए और प्राइमरी के मास्टर का मूल वेतन 195 रुपए था।

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साल 2017 की बात करें तो आज सरकारी चपरासी को कम से कम 20 हजार रुपए और प्राइमरी स्कूल के मास्टर को न्यूनतम 30 से 40 हजार रुपए मिलते हैं, जबकि ऊपर के ग्रेड में तनख्वाह और तेजी से बढ़ी हैं। जबकि गेहूं का सरकारी मूल्य 16 रुपए 25 पैसे ही है। 37 साल में सरकारी नौकर की सैलरी में कम से 150 गुना बढ़ोतरी हुई जबकि गेहूं की कीमत 16 गुना ही बढ़ी। इस दौरान 1 रुपए वाला डीजल 58 रुपए लीटऱ हो गया है। और 2-3 रुपए वाली मजदूरी 200 रुपए प्रतिदिन हो गई है। यानि किसान का खर्च तो तेजी से बढ़ा लेकिन बाकी लोगों के अऩुपात में उसे उपज की सही कीमत नहीं मिली।

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30 दिसंबर 2016 को जारी एनसीआरबी के रिपोर्ट ‘एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015’ के मुताबिक साल 2015 में 12,602 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने आत्महत्या की है। 2014 की तुलना में 2015 में किसानों और कृषि मजदूरों की कुल आत्महत्या में दो फीसदी की बढ़ोतरी हुई। साल 2014 में कुल 12360 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की थी।आत्महत्या करने वाले इन 12,602 लोगों में 8,007 किसान थे जबकि 4,595 खेती से जुड़े मजदूर थे। साल 2014 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 5,650 और खेती से जुड़े मजदूरों की संख्या 6,710 थी। इन आंकड़ों के अनुसार किसानों की आत्महत्या के मामले में एक साल में 42 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। वहीं कृषि मजदूरों की आत्महत्या की दर में 31.5 फीसदी की कमी आई है।

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किसानों के आत्महत्या के मामले में सबसे ज्यादा खराब हालत महाराष्ट्र की रही। राज्य में साल 2015 में 4291 किसानों ने आत्महत्या कर ली। महाराष्ट्र के बाद किसानों की आत्महत्या के सर्वाधिक मामले कर्नाटक (1569), तेलंगाना (1400), मध्य प्रदेश (1290), छत्तीसगढ़ (954), आंध्र प्रदेश (916) और तमिलनाडु (606) में सामने आए।