GST : सरकार ने इन 6 मिथकों को किया साफ

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नई दिल्ली : आजादी के बाद का देश का सबसे बड़ा कर सुधार GST 1 जुलाई से अस्तित्व में आ गया है। GST के तहत टैक्स रेट के 4 स्लैब बने हैं जो 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत हैं। एक तरफ जहां इस ऐतिहासिक टैक्स सिस्टम ने ‘एक देश, एक कर’ के सपने को साकार किया है, वहीं दूसरी तरफ लोगों में इसने चिंता भी बढ़ाई है कि यह उनके बिजनस, वित्तीय स्थिति और रोजमर्रा की जिंदगी को कैसे प्रभावित करेगा। GST को लेकर लोगों के मन में तमाम तरह के मिथक हैं। राजस्व सचिव हसमुख अढ़िया ने रविवार को जीएसटी के बारे में बनी कुछ गलत धारणाओं को दूर करने की कोशिश की। उन्होंने ट्विटर पर GST के बारे में बने कुछ कॉमन मिथकों और सच्चाई क्या है, उसके बारे में बताया।

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उच्च कर दर
मिथक- GST रेट पहले के VAT की तुलना में ज्यादा है।
सच्चाई- ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि पहले ऐक्साइज ड्यूटी और दूसरे कर अदृश्य थे जबकि अब ऐसे सभी कर GST में समाहित हैं। इस वजह से यह ज्यादा दिख रहा है।

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इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजैक्शंस
मिथक- सभी तरह के इनवॉइस (बिल) सिर्फ कंप्यूटर/इंटरनेट द्वारा ही तैयार होंगे।
सच्चाई-इंटरनेट की GST  लिए मंथली रिटर्न भरते वक्त ही जरूरत होगी।

बिजनस परमिट्स
मिथक- मेरे पास प्रविजनल आईडी है लेकिन बिजनस करने के लिए फाइनल आईडी का इंतजार कर रहा हूं।
सच्चाई- प्रविजनल आईडी ही आपका फाइनल GSTIN नंबर होगा।

इज ऑफ डूइंग बिजनस
मिथक-ट्रेड का कोई आइटम जो पहले टैक्स के दायरे से बाहर था लेकिन अब बिजनस शुरू करने से पहले रिटेलर को नया रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
सच्चाई- आप बिजनस जारी रख सकते हैं। 30 दिनों को भीतर रजिस्ट्रेशन करा लें।

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फाइलिंग रिटर्न्स
मिथक- हर महीने 3 रिटर्न भरना होगा।
सच्चाई- सिर्फ एक रिटर्न भरना है जो तीन हिस्सों में है। पहला हिस्सा डीलर द्वारा भरा जाएगा और बाकी दोनों हिस्सों कंप्यूटर द्वारा ऑटोमैटिकली भरे जाएंगे।

छोटे कारोबार
मिथक- यहां तक कि छोटे डीलरों को भी रिटर्न में बिलवार डीटेल भरना होगा।
सच्चाई- जो लोग रिटेल बिजनस (B2C) में हैं उन्हों कुल बिक्री का सिर्फ सारांश ही बताना होगा।