गुजरात के कच्छ जिले में शुक्रवार-शनिवार (30 जून-1 जुलाई) की रात को 65 गायों, बछड़ों की मौत हो गई थी। घटना रापर तालुका के एक मवेशी-खाने में हुई। अब पोस्टमॉर्टम में सामने आया है कि गायों की मौत की वजह सायनाइड के जहर की वजह से हुई है। पहले यह माना जा रहा था कि बाढ़ की वजह से गायों की मौत हुई, मगर अब अधिकारियों का कहना है कि इसका पिछले सप्ताह हुई भारी बारिश से कोई लेना-देना नहीं है। साल भर में इतनी बड़ी संख्या में गायों की मौत की यह दूसरी घटना है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, घटना रातर कस्बे से करीब 7 किलोमीटर दूर श्री जिवदया मंडल (एसजेएम) के मवेशी-खाने में हुई। शनिवार रात को भारी बारिश हुई थी। शाम साढ़े सात बजे के आसपास को चरवाहों ने पाया कि कुछ गायें अचानक बेहोश हो जा रही हैं। एसएजेएम के मैनेजर राजेन्द्र कोठारी ने एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, ”जैसे ही हमारे लोगों ने बताया कि मवेशी बेहोश हो रहे हैं, हमनें पशु-चिकित्सकों को मौके पर भेजा और करीब 80 गायों व बछड़ों का इलाज शुरू कर दिया। दुर्भाग्य से हम सिर्फ 30 को बचा पाए जबकि 65 की मौत हो गई।”
एसजेएम एक ट्रस्ट है जो रापर में तीन मवेशी-पाल गृह चलाता है, संस्था करीब 8,000 पशुओं की देशभाल करती है। बीते गुरुवार को रापर में 7 इंच बारिश हुई थी, उसके बाद अगले दो दिन बारिश जारी रही। पशु चिकित्सकों ने साफ कर दिया है गायों की मौत बारिश की वजह से नहीं हुई। रापर के सरकारी वेटरिनरी ऑफिसर शैलेष चौधरी ने कहा, ”गायों के पोस्टमॉर्टम से स्पष्ट हो गया कि उनकी मौत सायनाइड के जहर की वजह से हुई थी जो कि हरे बाजरे में पाया गया, यह उन्हें शनिवार की दोपहर को खिलाया गया था। चारे में सायनाइड की मात्रा अधिक थी और उसके बाद मवेशियों का पानी पीना जानलेवा साबित हुआ। हालांकि, इन मौतों का बारिश से लेना-देना नहीं है।”
कोठारी के अनुसार, मवेशियों के लिए चारा पड़ोसी गांवों से आता है। उन्होंने कहा, ”हमें रोज करीब 10 ट्रक चारे की जरूरत होती है। शनिवार को सभी जानवरों को हरे बाजरे का चारा दिया गया था। लेकिन वेटरिनरी डॉक्टररों ने बताया कि सायनाइड मिला चारा खाने के बाद पानी पीना घातक साबित हुआ। इसलिए जिन गायों ने बाजरा खाने के बाद पानी पिया, वे प्रभावित हुईं और उनमें से कुछ की मौत हो गई।”
कच्छ के कई इलाकों में राज्य सरकार टोकन दरों पर चारा मुहैया कराती है। रापर में ममलतदार प्रमुख हमीर वाघेला ने कहा, ”चारा वितरण रापर में भी चल रहा है। फतेहगढ़ में भी घास डिपो है। हालांकि सभी लोग यहां से घास नहीं खरीदते।” कच्छ की यह घटना राज्य सरकार की गायों के प्रति संवेदनशीलता दिखाने के कुछ ही दिन बाद हुई है। हाल ही में बीजेपी सरकार ने गुजरात पशु संरक्षण अधिनियम में बदलाव कर गायों की हत्या पर उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया है। इसके अलावा बीफ की बिक्री, भंडारण और ढुलाई को लेकर भी सजा बढ़ाई गई है।