पिछले डेढ़ सौ साल से देश में अपनी सेवाएं दे रही भारतीय रेल किस तरह गोरखधंधे का अड्डा बन चुकी है। इसका खुलासा किया है कोबरापोस्ट और इंडिया न्यूज़ की टीम ने। एशिया का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क होने के बावजूद कैसे भारतीय रेल माफियाओं के हाथों का खिलौना बन चुकी है। राजधानी दिल्ली और एनसीआर के कई बड़े रेलवे स्टेशनों पर उत्तर रेलवे के नियमों को ताक पर रख कुछ संगठित लोग अवैध खाद्य पदार्थ बेच रहे हैं। इतना ही नहीं ये सामान रेलवे के तय मूल्यों से भी अधिक दामों पर बेचा जा रहा है।
रेलवे स्टेशनों पर मनमानी करने वाले इन लोगों को कुछ रेलवे के लाइसेंस धारक विक्रेता हैं तो कुछ पूरी तरह अवैध हैं। जिन्हें स्टेशन परिसर में घुसने तक की अनुमति तक नहीं है लेकिन ये लोग यहां बेरोक-टोक सामान बेचते हैं और वो भी मनमानी कीमतों पर। ये माफिया इस काम में नाबालिक बच्चों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। हैरानी वाली बात तो ये है कि ये गोरखधंधा किसी दबे-कुचले इलाके में नहीं बल्कि राजधानी दिल्ली और उससे सटे स्टेशनों पर धड़ल्ले से चल रहा है। हमारी तहकीकात में इस बात का भी खुलासा हुआ कि इस जालसाजी को अंजाम देने वाले माफियाओं के तार उत्तर रेलवे के कर्मचारी और जी॰आर॰पी॰ के लोगों से भी जुड़े हैं। इन सबकी मिलीभगत से कैसे रेल में सफर करने वाले मुसाफिरों को ठगा जा रहा है। इस बारे में कोबरापोस्ट और इंडिया न्यूज़ की टीम ने बड़ी तहकीकात की है।
सच्चाई का पता लगाने के लिए हमारी टीम के दिल्ली और एनसीआर के कई रेलवे स्टेशनों का दौरा किया और यहां अवैध सामान बेचने वाले कई माफियाओं से मुलाकात भी की। ये वहीं लोग हैं जो रेलवे स्टेशन पर खाने का सामान और पेय पदार्थ विक्रेताओं यानी वैंडर का गिरोह चलाते हैं। इन लोगों ने हमें बताया कि रेलवे स्टेशन पर सामान बेचने के लिए हमें 200 रुपये हर रोज़ बतौर टैक्स इन टैक्स माफियाओं को देना होगा। खास बात ये है कि फिर चाहे हम यात्रियों को मुंह मांगी रकम पर सामान बेचकर कितना भी कमाएं। इन लोगों ने हमें साफ तौर पर ये भी बता दिया कि हम स्टेशनों पर जो चाहें बेचें लेकिन पानी नहीं बेच सकते, हमारे पूछने पर उस शख्स ने हमें ये भी बता दिया कि पानी नकली आ रहा है और उस पानी को पुलिस बिकवा रही है इसमें हमारा कोई रोल नहीं है। इसके बाद जब हमने बिल्ले की भी बात की तो शानू नाम के उस शख्स ने कहा कि अभी बिल्ला (मेडिकल) नहीं मिलेगा। हमारे आधे से ज्यादा लड़के बिना बिल्ले के ही काम कर रहे है। अगर उन्हें कोई पकड़ भी लेता है तो उसे हम छुड़ा कर ले आते हैं। यही नहीं इस शख्स ने हमें बताया कि अगर आप ट्रेन मे सामान बेचते वक्त या स्टेशन पर कहीं भी दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं या फिर आपकी मौत हो जाती है तो इसमें इनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी।
ऐसा कहने वाला ये कोई एक शख्स नहीं बल्कि हमारी टीम ने अलग-अलग स्टेशनों पर मौजूद कई ऐसे माफियाओं से बातचीत की और सभी ने हमें 150-200 रुपये रोजाना देकर सामान रेल और स्टेशनों पर अवैध सामान बेचने की हरी झंडी दे दी। इन माफियाओं के अलावा उत्तर रेलवे के लाइसेंसधारी वैंडर्स भी इस गड़बड़ी में बराबर के हिस्सेदार बन हुए हैं। ये लोग रेलवे स्टशनों पर ‘रेल नीर’ के अलावा प्राइवेट कंपनियों का पानी बेचते हैं वो भी MRP से ज्यादा कीमतों पर। ग्राहकों जब इस बात का विरोध करते हैं तो उन्हें दुतकार दिया जाता है।
बजट आने से कुछ दिन पहले ही कोबरापोस्ट-इंडिया न्यूज़ की टीम ने एक ऐसा खुलासा किया है जो इतने बड़े रेल नेटवर्क पर सवाल खड़े करता है कि आखिर ये सब क्या चल रहा है, किसकी शह पर चल रहा है और आखिर इसका जिम्मेदार कौन है। पिछले कई साल से भारतीय रेल सुविधाओं के नाम पर यात्री किराए में इजाफा करती जा रही है, लेकिन सुविधाओं के बदले मुसाफिर आखिर क्यों इतनी बड़ी ठगी का शिकार हो रहे हैं। आखिर क्यों उत्तर रेलवे प्रबंधन ऐसे लोगों पर लगाम कसने में नाकाम साबित हो रहा है? इन तमाम सवालों के जवाब जब तक नहीं मिल जाते, शायद तब तक इस गोरखधंधे पर रोक नहीं लग पाएगी।
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