सात साल में सरकार ने मदरसों पर खर्च किए 1,000 करोड़

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भले ही देश में मुस्लिमों के साथ सौतेले व्यव्हार को लेकर अलग-अलग संगठन सरकार के विरोध में आवाज उठाते रहे हों लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है। सच्चाई ये है कि देश में मुस्लिम लोगों को समान अधिकार दिए गए हैं और उनके मजहब को भी हिफाज़त से संजोया गया है। मुस्लिम एजुकेशन को बढ़ावा देने वाले मदरसों को बढ़ाने और उनके आधुनिकीकरण में सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में मोटा पैसा खर्च किया है। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक पिछले सात साल में मदरसों के आधुनिकीकरण को लेकर 1000 करोड़ रुपया खर्च किया गया है।

1 अगस्त, 2016 को लोक सभा में मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले सात वर्षों में मदरसों (शिक्षण संस्थानों के लिए एक अरबी शब्द) या इस्लामी शैक्षिक संस्थानों के आधुनिकीकरण के लिए केंद्र सरकार ने 1,000 करोड़ से अधिक खर्च किया है।

मदसरा शिक्षा का आधुनिकरण

Source: Ministry of Human Resource Development

सरकार ने मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए 2009-10 में शुरु की गई योजना (SPQEM) के खर्च में करीब पांच गुना वृद्धि – 46 करोड़ रुपए से 294 करोड़ रुपए – की है। खर्च पिछले एक वर्ष के दौरान – 2015-16 – लगभग दोगुनी हुई है। यदि आंकड़ों पर नज़र डालें तो यह खर्च 108 करोड़ रुपए से बढ़ कर 294 करोड़ रुपए हुई है।

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मंत्री ने लोकसभा में दिए एक जवाब में कहा है, “योजना (SPQEM) के तहत परंपरागत संस्थानों जैसे कि मदरसों को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है ताकि शिक्षकों, किताबें, शिक्षण अधिगम सामग्री और कंप्यूटर लैब के समर्थन से अपने पाठ्यक्रम में आधुनिक शिक्षा लागू करने के लिए विज्ञान, गणित, सामाजिक अध्ययन, हिंदी और अंग्रेजी शामिल कर सकें।”

उत्तर प्रदेश के मदरसों को सबसे अधिक धन प्राप्त हुआ

पिछले सात वर्षों के दौरान, उत्तर प्रदेश के 48,000 से अधिक मदरसों को वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है  जोकि सभी राज्यों में सबसे अधिक है। इस संबंध में दूसरा और तीसरा स्थान मध्य प्रदेश और केरल का है।

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उत्तर प्रदेश को सबसे अधिक धन प्राप्त

Source: Ministry of Human Resource Development;Figures for the period 2009-10 to 2015-16

हालांकि, उत्तर प्रदेश में पिछले वर्ष की तुलना में, वर्ष 2015-16 में, समर्थित मदरसों की संख्या में 62 फीसदी की वृद्धि हुई है (9217 से 14,974) जबकि इस संबंध में बिहार में 13 गुना वृद्धि (80 से 1,127) दर्ज की गई है।

मदरसों के छात्र मुख्य रूप से मुस्लिम होते हैं, जिनकी भारत के अल्पसंख्यकों के बीच साक्षरता में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई है – 9.4 प्रतिशत अंक,2 001 में 59.1 फीसदी से 2011 में 68.5 फीसदी। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 26 जुलाई, 2016 को विस्तार से बताया है।

2010 में समाप्त हुए दशक में आंकड़े तिगुना होने के बावजूद – 5.2 फीसदी से 13.8 फीसदी – उच्च शिक्षा में मुस्लिम नामांकन की दर 23.6 फीसदी के राष्ट्रीय आंकड़ा, अन्य पिछड़ा वर्ग (22.1 फीसदी) और अनुसूचित जाति (18.5 फीसदी) से पिछड़ा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 22 जुलाई 2016 को विस्तार से बताया है।

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अरशद आलम, दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर ने 25 जुलाई, 2015 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में लिखा है, “1993 के बाद से, मदरसे आधुनिकीकरण नीति, मुख्य रूप से आजाद मदरसों के लिए डिजाइन किया गया है। इसके पीछे मुख्य मकसद पुस्तकों और अतिरिक्त शिक्षकों के लिए राज्य अनुदान के एवज में उन्हें आधुनिक विषयों को पढ़ाने के लिए तैयार करना था।”

आलम आगे लिखते हैं, “लेकिन नीति में मदरसों को सजातीय के रूप में देखा गया, इसलिए अनुदान भी राज्य वित्त पोषित मदरसों द्वारा एकाधिकार किया गया। इसके अलावा आज़ाद मदरसों को दिया गया अधिकतम अनुदान अंशकालिक अप्रशिक्षित शिक्षकों को नियुक्त करने के लिए इस्तेमाल किया गया  जो इन संस्थानों में गुणवत्ता की शिक्षा शुरू करने के उद्देश्य को निष्फल करता है। और इन सबसे आगे, मदरसा जो देवबंदी और अहल -ए -हदीस से संबद्ध हैं, इस तरह की पहल में भाग लेने से साफ इंकार किया है।”

खबर इनपुट – इंडियास्पेंड