रिजर्व बैंक (RBI) ने आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 500 और 1000 रुपये के नोटबंदी के फैसले की डिटेल साझा करने से मना कर दिया। बैंक की ओर से कहा गया है कि इससे जान और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। जनसत्ता के हवाले से खबर है कि ब्लूमबर्ग न्यूज ने आरटीआई के जरिए आठ दिसंबर से दो जनवरी के बीच आरबीआई से 14 सवाल किए थे, 11 जनवरी तक इनमें से पांच के जवाब दिए गए। इसमें बैंक की बोर्ड मीटिंग के समय और तारीख की जानकारी के साथ ही कहा गया कि बोर्ड ने आठ नवंबर से पहले नोटबंदी पर चर्चा नहीं की। बैंक की ओर से कहा गया कि बैंकों में बिना मूल्य के कितने नोट जमा हुए इसकी उसके पास जानकारी नहीं है। साथ ही नए नोटों को छापने को लेकर पूछे गए दो सवाल प्रिंटिंग प्रेस संभालने वाले संगठनों को भेज दिए गए।
जनसत्ता की खबर में ये भी लिखा गया है कि आरबीआई की तरफ से कहा गया कि बोर्ड ने किस आधार पर नोटबंदी पर चर्चा की और इस पर मुहर लगाई यह सवाल आरटीआई एक्ट की जानकारी की परिभाषा के तहत नहीं आता। ब्लूमबर्ग ने आगे बताया कि नोटबंदी का विरोध करने वाले बोर्ड सदस्यों को लेकर तीन बार पूछे गए एक सवाल पर अलग-अलग जवाब दिए गए। दो जवाबों में कहा गया कि निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया। एक अन्य जवाब में बताया गया कि यह जानकारी रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी के एलान के वक्त बैंकों में कितने पुराने नोट थे, इस सवाल आरबीआई ने इस जानकारी को सार्वजनिक करने वाले की जान को खतरा बताया। रिजर्व बैंक ने दो अन्य सवालों को भी टाले जाने की बात कही। बैंक ने नोटबंदी की तैयारियों और इससे पड़ने वाले असर की भविष्यवाणी को लेकर भी जवाब नहीं दिया। इस पर कहा गया कि जवाब से भारत की स्वायत्तता, अखंडता और सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। आरबीआई के जवाबों पर केंद्रीय सूचना आयोग में नौकरशाह रहे शैलेश गांधी ने बताया कि आरटीआई के तहत सवालों के जवाब ना देकर आरबीआई नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन कर रही है।
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