बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद पर आज (सोमवार, 8 मई) सुप्रीम कोर्ट चारा घोटाले में अहम फैसा सुना सकता है। सीबीआई ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है जिसपर शीर्ष न्यायालय सुनवाई करेगी। वर्ष 1996 में सामने आए इस मामले में लालू यादव के अलावा कुल 47 आरोपी थे लेकिन लंबे समय से चल रही अदालती कार्यवाही के दौरान 15 आरोपियों की मौत हो गई जबकि सीबीआई ने दो आरोपियों को सरकारी गवाह बना लिया है। इसी मामले में एक अन्य आरोपी के खिलाफ मामले को झारखंड उच्च न्यायालय खारिज कर चुका है। कुल मिलाकर अब दुमका कोषागार से जुड़े इस मामले में केवल 29 आरोपी बचे हैं जिनमें कुछ पूर्व आईएएस अधिकारी भी शामिल हैं।
सीबीआइ ने उन पर षडयंत्र करने का आरोप लगाया था। गौरतलब है कि फर्जी कागजात प्रस्तुत कर चाईबासा कोषागार से लाखों रुपये की अवैध निकासी कर ली गई थी। झारखंड हाई कोर्ट द्वारा राजद सुप्रीमो को क्लीन चिट दे देने के बाद सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की थी, जिस पर फैसला सुरक्षित रखा गया था।
चारा घोटाला में लालू पर 6 मामले लंबित
चारा घोटाला में लालू यादव पर 6 अलग-अलग मामले लंबित हैं और इनमें से एक में उन्हें 5 साल की सजा हो चुकी है। इस घोटाले से जुड़े 7 आरोपियों की मौत हो चुकी है जबकि 2 सरकारी गवाह बन चुके हैं और एक ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और एक आरोपी को कोर्ट से बरी किया जा चुका है।
ये है मामला, पढ़ें- कब क्या-क्या हुआ ?
जनवरी, 1996 : उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा और ऐसे दस्तावेज जब्त किए जिनसे पता चला कि चारा आपूर्ति के नाम पर अस्तित्वहीन कंपनियों द्वारा धन की हेराफेरी की गई है, जिसके बाद चारा घोटाला सामने आया।
11 मार्च, 1996 : पटना उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इस घोटाले की जांच का आदेश दिया, उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर मुहर लगाई।
27 मार्च, 1996 : सीबीआई ने चाईंबासा खजाना मामले में प्राथमिकी दर्ज की।
23 जून, 1997 : सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया और लालू प्रसाद यादव को आरोपी बनाया।
30 जुलाई, 1997 : राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया। अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा।
5 अप्रैल, 2000 : विशेष सीबीआई अदालत में आरोप तय किया।
5 अक्टूबर, 2001 : उच्चतम न्यायालय ने नया राज्य झारखंड बनने के बाद यह मामला वहां स्थानांतरित कर दिया।
फरवरी, 2002 : रांची की विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई।
13 अगस्त, 2013 : उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई कर रही निचली अदालत के न्यायाधीश के स्थानांतरण की लालू प्रसाद की मांग खारिज की।
17 सितंबर, 2013 : विशेष सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
30 सितंबर, 2013 : बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र तथा 45 अन्य को सीबीआई न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने दोषी ठहराया।
3 अक्टूबर, 2013 : सीबीआई अदालत ने लालू यादव को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई, साथ ही उन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी किया है। लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद किया गया था।