चुनाव आयोग के 42 पेज के आदेश को पढ़ने से साफ पता चलता है कि मुलायम सिंह यादव के पक्ष ने अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया और चुनाव आयोग के सामने पूरे दस्तावेज़ नहीं दिए। ये माना जा रहा था कि अगर चुनाव आयोग को दोनों पक्षों की दलीलों में दम लगता तो वह साइकिल चुनाव चिन्ह को फिलहाल ज़ब्त कर सकता था और अपना फैसला बाद के लिए सुरक्षित कर सकता था। लेकिन चुनाव आयोग ने अपने फैसले में साफ लिखा है कि आयोग की ओर से मांगे जाने के बावजूद अपने समर्थन में विधायकों या सांसदों की चिट्टी नहीं दी।
आयोग ने जो फैसला सुनाया है, उसके पैरा 36 में विस्तार से लिखा है कि अखिलेश यादव के ग्रुप ने 228 में से 205 विधायकों, 68 में से 56 एमएलसी और 24 में से 15 सांसदों के समर्थन की चिट्टी दी। इसके अलावा अखिलेश की ओर से 46 में से 28 नेशनल एक्ज़ीक्यूटिव सदस्यों और 5,731 में से 4,400 राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के हलफनामें सौंपे, जिसमें कहा गया था कि वह अखिलेश के खेमे के साथ हैं।
चुनाव आयोग ने सिम्बल ऑर्डर के पैरा 15 का ज़िक्र करते हुए कहा है कि जिसके पक्ष में विधायी और सांगठनिक ताकत है, उसे ही असली दावेदार माना जाता है। आयोग ने अपने ऑर्डर के पैरा 37, 38 और 39 में साफ लिखा है कि मुलायम सिंह यादव की ओर से समर्थन में कोई दस्तावेज़ नहीं दिए गए, जबकि आयोग ने उन्हें 9 जनवरी तक का वक्त दिया था।
इतना ही नहीं, मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव की ओर से जमा किए गए शपथपत्रों की सत्यता पर तो सवाल उठाए, लेकिन आयोग को अपनी आपत्ति को लेकर कभी संतुष्ट नहीं किया। आयोग ने अपने आदेश के पैरा 39 में लिखा है कि बार-बार अवसर दिए जाने के बावजूद न तो मुलायम सिंह यादव ने कोई हलफनामा दिया और न ही किसी सांसद या विधायक का नाम बताया, जिसके शपथपत्र को वह फर्ज़ी मानते हों।