बोर्ड ने बहुविवाह के मसले पर पिछले साल सितंबर में कहा था, ‘कुरान, हदीस और सर्वमान्य मत मुस्लिम पुरुषों को 4 पत्नियां रखने की इजाजत देता है।’ बोर्ड ने कहा था कि इस्लाम बहुविवाह की इजाजत तो देता है लेकिन इसे प्रोत्साहित नहीं करता। बोर्ड ने साथ में यह भी कहा था कि बहुविवाह पुरुषों की वासना की पूर्ति के लिए नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक जरूरत है।
तीन तलाक के मसले पर अदालती सुनवाई के विरोध में वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह अलग-अलग विद्वानों की व्याख्या है, लेकिन तीन तलाक को अहले हदीस में पूरी मान्यता है। संविधान की कसौटी पर कसने के मुद्दे पर सिब्बल ने कहा कि तीन तलाक आस्था का मामला है जिसका मुस्लिम बीते 1400 वर्ष से पालन करते आ रहे हैं। इसलिए इस मामले में संवैधानिक नैतिकता और समानता का सवाल नहीं उठता है। मुस्लिम संगठन ने तीन तलाक को हिंदू धर्म की उस मान्यता के समान बताया जिसमें माना जाता है कि भगवान राम अयोध्या में जन्मे थे। उन्होंने कहा कि इस्लाम के उदय होने के समय वर्ष 637 से तीन तलाक अस्तित्व में है। इसे गैर इस्लामी बताने वाले हम कौन होते हैं। कोर्ट इसे तय नहीं कर सकता। तीन तलाक का स्रोत हदीस में है और यह पैगम्बर मोहम्मद के समय के बाद अस्तित्व में आया।