महिलाओं को देंगे तीन तलाक़ ठुकराने का विकल्प- ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड

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कानून
फाइल फोटो

सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर चल रही कर्रवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड ने कहा है कि बोर्ड मुस्लिम महिलाओं को निकाहनामे में तीन तलाक को ना कहने का विकल्प देने को तैयार है। बता दें कि शीर्ष अदालत में सीनियर अधिवक्ता कपिल सिब्बल बोर्ड का पक्ष रख रहे हैं। उन्होंने अदालत में बोर्ड में का पक्ष रखते हुए कहा, “हम भी इस रवायत को जारी नहीं रखना चाहते। हमने इस पर कल बैठक की। ये निकाहनामे का हिस्सा होगा। हमने सभी “क़ाजियों” को राये देंगे कि कि उन्हें एक बार में तीन तलाक को स्वीकृति देने से बचना चाहिए।”

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सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस खेहर की अगुवाई में पांच जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को तीन तलाक पर दायर याचिकाओं की सुनवाई पूरी कर ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में जस्टिस खेहर के अलावा जस्टिस कूरियन जोसेफ, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस आरएफ नारीमन और जस्टिस अब्दुल नजीर सदस्य थे। संविधान पीठ ने बुधवार (17 मई) को मुस्लिम पर्सन लॉ बोर्ड से पूछा था कि क्या ये संभव है कि निकाहनामे में तीन तलाक को ना कहने का विकल्प दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड के वकील सिब्बल से पूछा था, “क्या ये संभव है कि सभी काजियों को निकाहनामे में ये शर्त शामिल करने के लिए कहा जाए?”

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मुस्लिम लॉ बोर्ड के सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ मुछाला ने अदालत की सुनवाई पूरी होने के बाद मीडिया से कहा, “निकाह के समय दुल्हन को बताया जाएगा कि उसके पास निकाहनामे में ये शर्त रखने का विकल्प होगा कि उसका शौहर उसे एक बार में तीन तलाक नहीं देगा।” ये पूछने पर कि इस प्रस्ताव को अमली जामा कैसे पहनाया जाएगा? यूसुफ मुछाला ने कहा, “हमने कोई समयसीमा नहीं तय की है लेकिन हम ये करेंगे।”

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याचिकाकर्ता शायरा बानो की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ अधिकवक्ता अमित सिंह चढ्ढा ने अदालत से कहा, “इससे हमारी मुश्किल हल नहीं होगी क्योंकि इससे शादीशुदा महिलाओं को फिर से अदालत ही आना होगा।” एक अन्य याचिकाकर्ता फरहा फयाज ने काजियों की योग्यता पर सवाल खड़ा करते हुए अदालत में कहा कि उन्हें औरतों की जिंदगियों का फैसला लेने का हक किसने दिया है? फरहा ने अदालत से कहा कि समानांतर न्याय व्यवस्था “दार-उल क़दा” बंद होनी चाहिए।