नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने मंगलवार(30 अगस्त) को व्यवस्था दी कि शीर्ष अदालत की बड़ी पीठ की ओर से जिस मामले पर पहले ही फैसला सुनाया जा चुका हो, उस पर फिर से सुनवाई अंत: न्यायालय अपील (इंट्रा-कोर्ट अपील) मानी जाएगी, जिसकी इजाजत न तो संविधान में है और न ही किसी मौजूदा कानून में।
व्यापम घोटाले से जुड़े एक मामले में न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति ए एम सप्रे की खंडपीठ की ओर से पारित एक स्पष्टीकरण आदेश के कारण एक अलग तरह की स्थिति उभर आई थी।
न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने स्पष्टीकरण मांगा था कि क्या वह पूरे मामले की सुनवाई फिर से कर सकती है या खुद को उन 634 मेडिकल छात्रों को सुनाई गई सजा की अविध तक सीमित रख दी सकती है, जिन्हें व्यापम की ओर संचालित प्रवेश परीक्षा के दौरान कदाचार का दोषी पाया गया था।
दो सदस्यों वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि ‘‘28 जुलाई 2016 को जारी किए गए आदेश में संविधान के अनुच्छेद 145(5) का संदर्भ समझने में हम नाकाम रहे हैं।’’ पीठ ने कहा कि ‘‘हमारी राय है कि जहां तक सुप्रीम कोर्ट की बात है, न तो भारत के संविधान में और न ही देश के किसी कानून में अब तक अंत: न्यायालय अपील का प्रावधान किया गया है। पूरे मामले की फिर से सुनवाई, जैसा कि बड़ी पीठ की ओर से कहा गया है, हमारी राय में अंत: न्यायालय अपील के बराबर होगी।’’