अंतराल
सभी बच्चों को प्रयाफ्त सेवा नहीं मिल पाने के कारण कई रिपोर्टों में आईसीडीएस में कई तरह की कमियों का जिक्र किया गया है।
35 राज्यों के 100 जिलों में पूर्व योजना आयोग द्वारा वर्ष 2011 में आईसीडीएस के मूल्यांकन के अनुसार, कुल पात्र बच्चों के लगभग 50 फीसदी आंगनवाड़ी केंद्रों तक गए और मानदंडों के अनुसार प्रभावी कवरेज आईसीडीएस लाभ के लिए पंजीकृत लोगों का केवल 41 फीसदी है।
रिपोर्ट में कहा गया है- “आंगनवाड़ी कार्यकर्ता काम के अत्यधिक बोझ से दबे हैं , कम वेतनमान में काम करते हैं और ज्यादातर अकुशल हैं। इससे योजना का प्रभाव कम पड़ता है।”
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा आईसीडीएस पर वर्ष 2012 के ऑडिट में पाया गया कि 60 प्रतिशत आंगनवाड़ी केंद्रों के पास स्वयं की इमारत नहीं थी। 25% अर्ध-पक्के / कच्चे भवनों में या आंशिक रूप से खुली जगह काम कर रहे थे।
कैग रिपोर्ट में बताया गया कि 52 फीसदी आंगनवाड़ी केंद्रों में शौचालय नहीं था और 32 फीसदी में पीने के पानी की सुविधा नहीं थी, जिससे स्वच्छता और स्वच्छता की समस्याएं पैदा हुईं है।
बुनियादी ढांचे के मुद्दों के अलावा, लेखा परिक्षकों ने पाया कि वर्ष 2006 से वर्ष 2011 के बीच 33 से 47 फीसदी बच्चों का वजन नहीं लिया गया था। साथ ही बच्चों के पोषण संबंधी स्थिति के डेटा में भी अंतर पाया गया था।
लेखा परीक्षकों ने पाया कि इस योजना से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के लिए धन जारी नहीं किया गया था और जारी किए गए धन का एक बड़ा हिस्सा वेतन में चला गया था। रिपोर्ट में यह भी कहा कि मंत्रालय द्वारा आंतरिक निगरानी और मूल्यांकन पर अनुवर्ती कार्रवाई पर्याप्त नहीं थी।
लगभग 60 फीसदी आंगनवाड़ी केंद्र अपने आपातकालीन साधनों और सेवा जैसे कि रेफरल व्यवस्था, दवाइयों और बर्तनों की कमी के लिए 1,000 रुपये प्रति वर्ष के अपने फ्लेक्सी फंड का इंतजार कर रहे थे। यह जानकारी दिल्ली की संस्था ‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ द्वारा पांच राज्यों के 10 जिलों में फैले 300 आंगनवाड़ी केंद्रों के लिए वर्ष 2016 में हुए एक सर्वेक्षण में सामने आई है।
सर्वेक्षण के दौरान, 14 प्रतिशत आंगनवाड़ी केंद्रों ने अनाजों की कमी की सूचना दी और 41 फीसदी ने अनाज खरीदने में देरी की सूचना दी ।