एक अच्छे कोर्स में डिग्री पाने के बाद हर स्टूडेंट चाहता है कि उसकी अच्छी नौकरी लगे। जरा सोच कर देखिए अगर आपने अच्छे कॉलेज से पढ़ाई की है तो जाहिर सी बात है आप एक अच्छे लेवल की नौकरी भी तलाशेंगे। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे स्टूडेंट की कहानी बताने जा रहे हैं जो बिहार के नालंदा जिले के मोहम्मदपुर गांव में जन्में कौशलेंद्र की है। कौशलेंद्र अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। उनके माता-पिता गांव के स्कूल में ही टीचर हैं। कौशलेन्द्र ने पांचवीं तक की पढ़ाई प्राथमिक विद्यालय में की। छठी से 10वीं तक नवोदय विद्यालय में और 12 वीं की पढ़ाई पटना में करने के बाद एग्रीकल्चर से इंजीनीयरिंग की पढ़ाई गुजरात से पूरी की।
भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद (आईआईएमए) से एमबीए की डिग्री गोल्ड मेडल से प्राप्त करने के बाद कौशलेंद्र वापस बिहार आ गये और किसानों के साथ मिलकर सब्जी बेचने का बिजनेस करने लगे। आईआईएमए अहमदाबाद जैसे इंस्टीट्यूट से टॉप करने के बाद बिहार जैसे राज्य में आकर सब्जी बेचना काफी अजीब लगता है, लेकिन कौशलेंद्र को किसी की परवाह नहीं थी।
कौशलेंद्र पटना अपने भाई धीरेंद्र कुमार के साथ 2008 में कौशल्या फाउंडेशन नाम से एक कंपनी बनाई। कौशलेंद्र बताते हैं, ‘मेरा हमेशा से यही मानना था कि बिहार की स्थिति तभी बदल सकती है जब यहां के किसानों की स्थिति में सुधार होगा।’ उन्हें लगा कि किसान संगठित नहीं हैं। अगर कोई किसान सरसो की नई फसल लगाता है तो वह अपने पड़ोसी को इस बारे में नहीं बताता है क्योंकि उसे लगता है कि अगर गांव में सबकी फसल अच्छी हो जाएगी तो उसे फसल का दाम नीचे गिर जाएगा।
कौशलेंद्र कुमार ने नौकरी करने के बजाए अपना खुद का काम शुरू करने का फैसला लिया और एक नए तरह का अनोखा बिजनेस सब्जी बेचने का काम शुरू किया। कौशलेंद्र की एग्री बिजनेस कंपनी का टर्नओवर पांच करोड़ से ज्यादा है और सबसे खास बात यह कि उनकी यह कंपनी लगभग 20,000 किसानों की मदद कर रही है और उनकी रोजी-रोटी का साधन बन गई है। साथ ही लगभग 700 लोग इस कंपनी में नौकरी भी करते हैं।
कौशलेंद्र बताते हैं, “किसानों की सोच बदलना इतना आसान काम नहीं था। शुरुवात में दो तीन किसान आगे आये, पहले दिन भिन्डी, मटर, फूलगोभी बेचने जब पटना पहुंचे तो सिर्फ 22 रुपए की बिक्री हुई, सब्जी खरीदी कितने के थी ये मुझे याद नहीं है पर 22 रुपए की बिक्री हुई ये मेरे लिए खुशी की बात थी, कम से कम बिक्री तो हुई, कोई तो लेने आया।
कौशलेन्द्र के पास पटना में एक 10 टन वाला छोटा कोल्ड चैंबर है। नालंदा की सकरी गलियों में ग्राहकों को ताजी सब्जियां पहुंचे इसके लिए इन्होने आईस कोल्ड पुश कार्ट (गली-गली सब्जी बेचने वाला ठेला) जो फाइबर से बनाया। इस ठेले में 200 किलो तक सब्जी आ जाती हैं पांच से छह दिन तक सब्जियां ताजी रहती है, इसमे इलेक्ट्रॉनिक तराजू भी है इससे ग्राहकों के दरवाजे तक ताजी सब्जी पहुंचती है।
कौशलेंद्र की समृद्धि योजना अब पूरे देश में लागू करने की तैयारी है। वो हजारों किसानों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं। बिहार के साथ दूसरे राज्यों के किसान उनके यहां सब्जी का ये सफल मॉडल सीखने जा रहे हैं। कौशलेंद्र की सफलता इस मायने में भी सराहनीय है इसी देश में हर साल अरबों रुपए की कुल उप्पादन की 40 फीसदी सब्जियां और फल बर्बाद हो जाते हैं।