सिंधु जल संधि के मुताबिक भारत इन नदियों के पानी का कुल 20 प्रतिशत पानी ही रोक सकता है। वह चाहे तो इन नदियों पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना सकता है, लेकिन उसे रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बनाने होंगे, जिनके तहत पानी को रोका नहीं जाता. भारत कृषि के लिए इन नदियों का इस्तेमाल कर सकता है।
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भारत को सिंधु नदी घाटी में ये फायदा मिलता है कि इन नदियों के उद्गम के पास वाले इलाके भारत में पड़ते हैं। यानी नदियां भारत से पाकिस्तान में जा रही हैं और भारत चाहे तो सिंधु के पानी को रोक सकता है। पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां बहती हैं, यानी उसका करीब 65 प्रतिशत भूभाग सिंधु रिवर बेसिन पर है। पाकिस्तान ने इस पर कई बांध बनाए हैं, जिससे वह बिजली बनाता है और खेती के लिए इस नदी के पानी का इस्तेमाल होता है. यानी पाकिस्तान के लिए इस नदी के महत्व को कतई नकारा नहीं जा सकता.
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मौजूदा हाल में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जिस तरह से सिंधु जल संधि को तोड़ने की बात की जा रही है वह कहने को तो मुमकिन है, लेकिन व्यवहारिक कठिनाइयां और उसके नतीजे भारत के पक्ष में नहीं जाते। कहना गलत नहीं है कि इन नदियों के बीच पानी का समंदर है जिसे रोक पाना कोई आसान काम नहीं. इसके लिए भारत को बांध और कई नहरें बनानी होंगी, जिसके लिए बहुत पैसे और वक्त की ज़रूरत होगी। इससे विस्थापन की समस्या का समाना भी करना पड़ सकता है और इसके पर्यावरणीय प्रभाव भी होंगे।
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दूसरी ओर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी बट्टा लगेगा। अब तक भारत ने इस इंटरनेशनल ट्रीटी का कभी भी उल्लंघन नहीं किया। अगर भारत अब पानी रोकता है तो पाकिस्तान को हर मंच पर भारत के खिलाफ बोलने का एक मौका मिलेगा और वह इसे मानवाधिकारों से जोड़ेगा। चीन से कई नदियां भारत में आती हैं और आने वाले दिनों में चीन इस मुद्दा बनाते हुए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।