उरी हमले के बाद से भारत में पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की मांग जोर-शोर से उठ रही है। और इसी के तहत सोशल मीडिया पर भारत पर सिंधु जल संधि को भी तोड़ने की मांग उठ रही है। लेकिन मांग करनी जितनी आसान है, समझौता करना उतना आसान नहीं है।
भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे मौजूदा तनाव के बीच विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप के बयान से ये अटकलें लगने लगीं कि क्या भारत सिंधु जल संधि तोड़ देगा? क्या भारत 1960 में हुई इस संधि की अनदेखी करते हुए सिंधु का पानी रोकेगा? भारत और पाकिस्तान के बीच जंग का बिगुल बजाने के उत्सुक लोगों को ये बात भले ही उत्साहित करने वाली लगे, लेकिन सिंधु का पानी रोकना न तो व्यवहारिक विकल्प है और न ही ये आर्थिक रूप से संभव होगा।
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भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के बीच सिंधु जल संधि 1960 में हुई। इसमें सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया। पूर्वी हिस्से में बहने वाली नदियों सतलज, रावी और ब्यास के पानी पर भारत का पूर्ण अधिकार है, लेकिन पश्चिमी हिस्से में बह रही सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है।
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