मीरा कुमार के पिता ने कभी कांग्रेस के खिलाफ़ की थी बगावत, पढिए पूरी कहानी

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नई दिल्ली : पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को कांग्रेस की अगुआई वाले संयुक्त विपक्ष ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए कैंडिडेट राम नाथ कोविंद के खिलाफ खड़ा करने का फैसला किया है। हालांकि, यह दिलचस्प ही है कि मीरा के पिता जगजीवन राम ने कभी दिग्गज कांग्रेसी लीडर और देश की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था। जगजीवन राम देश के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक चेहरों में से एक थे। उनका राजनीतिक प्रभाव चार दशक से ज्यादा वक्त तक रहा।

दलित समुदाय से आने वाले जगजीवन राम अपने छात्र जीवन में काफी मेधावी थे, जो सामाजिक भेदभाव से लड़ते हुए राजनीति की बुलंदियों तक पहुंचे। उनकी एक बेहतर प्रशासक की छवि थी। वह सरकार और शासन से जुड़े पेचीदे मसलों को आसानी से हल करने के लिए जाने जाते थे। जगजीवन राम ‘बाबूजी’ के नाम से भी जाने जाते थे। भारत ने जब 1971 में पाकिस्तान को जंग में शिकस्त दी तो वह रक्षा मंत्री थे। 60 के दशक में जगजीवन राम के कृषि मंत्री रहने के दौरान हरित क्रांति को लेकर की गई कोशिशें सफल रहीं।

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जगजीवन राम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बड़े राजनेताओं की नजरों में पहली बार आए। उस वक्त वह कोलकाता में एक युवा मजदूर नेता थे। वह पीएम जवाहर लाल नेहरू की अंतरिम कैबिनेट में जगह बनाने वाले सबसे युवा सदस्य थे। वह 70 के दशक में मंत्री बने रहे। जगजीवन राम के उत्थान में कांग्रेस लीडरशिप का भी हाथ रहा। कांग्रेस उन्हें दलित महापुरुष भीम राव आंबेडकर के खिलाफ उनके कद के नेता के तौर पर स्थापित करना चाहती थी। जगजीवन राम को भी दलित होने की वजह से भेदभाव का सामना करना पड़ा, लेकिन आंबेडकर के उलट उन्होंने कभी हिंदुत्व के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला। शायद इसकी एक वजह यह भी थी कि उनके पिता बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के थे। इस बात का उल्लेख मिलता है कि जगजीवन बाबू ने एक बार हिंदू महासभा के कार्यक्रम में भी शिरकत की थी।

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कांग्रेस का जब विभाजन हुआ तो जगजीवन राम इंदिरा गांधी के पाले में आ गए। हालांकि, उनके नेहरू-गांधी परिवार से रिश्ते उस वक्त खराब हो गए, जब इंदिरा को शक हुआ कि जगजीवन राम बतौर पीएम उनको रिप्लेस करने की हसरत रखते हैं। यह वही वक्त था, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी की सदस्यता रद्द कर दी थी। जगजीवन राम ने उस वक्त मोर्चा खोल दिया, जब इंदिरा ने 1977 में चुनाव का ऐलान किया। उन्होंने एचएन बहुगुणा के साथ मिलकर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी बनाई और जनता पार्टी के साथ मिलाया। इंदिरा को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा।

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वह उन लोगों में से थे, जो पीएम पद के दावेदार थे। उन्हें कथित तौर पर जयप्रकाश नारायण का भी समर्थन हासिल था। हालांकि, वह अपनी उम्मीदवारी के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं जुटा पाए और उन्हें डेप्युटी पीएम के पद से ही संतोष करना पड़ा। जनता पार्टी ने उन्हें 1980 के चुनावों के पीएम कैंडिडेट बनाया, लेकिन इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हो गई। इसके बाद, जगजीवन राम ने जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस (जे) बनाई। हालांकि, उनका यह राजनीतिक दांव फेल हो गया। जगजीवन राम 1984 चुनाव में अपनी लोकसभा सीट बचाने में कामयाब रहे, लेकिन उनकी पार्टी चुनावों में बुरी तरह फेल हो गई। 1986 में उनकी मौत हो गई।