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पंचवर्षीय योजनाओं ने भारत के सामाजिक क्षेत्र का स्तर उठाने और भारी उद्योग के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। एक सेंट्रलाइज्ड प्लानिंग सिस्टम में यह सुनिश्चित होता था कि पैसे सबसे जरूरी जगह पर खर्च हों।लंबे समय से यह महसूस किया जा रहा था कि भारत जैसे विविधापूर्ण और बड़े देश में सेंट्रलाइज्ड प्लानिंग एक खास सीमा से आगे कारगर नहीं हो सकती। चूंकि, योजना आयोग केंद्र सरकार के तहत आ रहा था, इसलिए धन आवंटित करते वक्त इसका इस्तेमाल कई बार विरोधी राज्यों को दंडित करने में भी होता रहा। इसमें टॉप-टु-बॉटम अप्रोच की वजह से महसूस किया जाने लगा कि राज्यों को अपने खर्च की प्लानिंग करने में ज्यादा अहमियत मिलनी चाहिए। योजना आयोग ने कई बार राज्यों पर दादागिरी दिखाई जबकि राज्यों को अपने खर्चों की ज्यादा अच्छी समझ होती है।
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