बीमारी को जानलेवा बताते हुए डॉक्टरों ने कहा कि इस स्थिति में बीमारी का एकमात्र समाधान अस्थि मज्जा प्रतिरोपण है। जीनिया में जन्म के समय से ही आंशिक एल्बिनिस्म भी पाया गया।
भाषा की खबर के अनुसार, नारायण हेल्थ सिटी हॉस्पिटल के पीडियट्रिक हीमेटोलॉजी, ओंकोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के प्रमुख और सीनियर कंसलटेंट डॉ सुनील भट ने कहा कि लड़की में एचएलएच के निदान के बाद हमें पता चला कि उसके भाई रेयान का हयूमन ल्यूकोसाइट एंजीजेन उससे मिलता है।
डॉ भट्ट ने कहा कि डोनर की आयु मात्र आठ माह है इसे देखते हुए अस्थिमज्जा निकालने की प्रक्रिया को कुछ सप्ताह में दो बार अंजाम देने का फैसला किया गया।
मज्जा निकालने के लिए छोटी सुइयों का इस्तेमाल किया गया और इस दौरान विशेषज्ञों के एक दल से सहायता ली गई। अंतत: हमने जीनिया का इलाज करने के लिए जरूरी अस्थिमज्जा निकाल लिया। रेयान ने न सिर्फ अपनी बहन को बचाया, इसके साथ ही वह भारत में सबसे छोटा मज्जा डोनर भी बन गया।































































