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पार्टी ने कहा कि किसानों के लिए घोषित योजनाओं में भी गड़बड़ है। उसने जानना चाहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक जिला सहकारी बैंकों में जमा चलन से बाहर हुए नोटों को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। ऐसे में यह वित्तिय नुकसान उन बैंकों को उठाना होगा। अब प्रधानमंत्री ने घोषणा किया है कि कृषि ऋण का बोझ सरकार उठाएगी। सवाल यह है कि यह बैंक इतने भारी बोझ को कैसे उठा सकेंगे।’ शिवसेना ने कहा, ‘लोगों को जो दिक्कतें आ रही हैं, वह कब तक खत्म होंगी इसपर वे प्रधानमंत्री से एक ठोस उत्तर चाहते थे। लेकिन, संभवत: प्रधानमंत्री के पास स्वयं इसका उत्तर नहीं है। साथ ही प्रधानमंत्री के पास ठोस आंकड़े भी नहीं हैं कि नोटबंदी के बाद कितना काला धन बरामद हुआ है।’
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