गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णू, गुरुः देवो महेश्वरा, गुरु शाक्षात परब्रम्हा, तस्मै श्री गुरुवे नमः। ये श्लोक भले ही किसी को याद हो या न हो लेकिन हर शख्स की जिंदगी में एक एसा टीचर जरूर होता है जिनकी यादे हमेशा ताज़ा रहती हैं और हमारे लिए उनकी एक अलग ही अहमियत होती है। जब कभी हम स्कूल की बातें करते हैं तो अपनी टीचर्स के बारे में बाते करना कभी नहीं भूलते, अब भले ही वो उनकी आदतों की नकल करना हो या फिर उनकी डांट की, हमे टीचर्स की शाबाशी से ज्यादा उनकी डांट ज्यादा याद आती है। ये तो सभी जानते हैं आज का दिन हम स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति तथा दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। और इसकी शुरूआत तब हुई जब एक बार डॉ.राधाकृष्णन के मित्रों और शिष्यों ने उनका जन्मदिन मनाने का आग्रह किया तो उन्होंने उसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का सुझाव दिया लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था कि भौतिकता की आंधी में शिक्षक दिवस तब्दील होकर ‘टीचर्स डे’ हो जाएगा।
आज के छात्रों की नजर में ‘टीचर्स डे’ उनके अध्यापकों को खुश करने का दिन होता है, उन्हें पुरस्कार और कार्ड भेंट किये जाते हैं, बस ऐसे ही मनाया जाता है आधुनिक ‘शिक्षक दिवस’। लेकिन भारत को जरूरत है फिर से राधाकृष्णन की सोच के बारे में जानने की कि आखिर क्यों उन्होंने अपना जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के लिए कहा था। वे चाहते थे कि इस दिन अच्छे शिक्षकों का सम्मानित किया जाए और शिक्षकों को उनके उत्तरदायित्वों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरुक किया जाए, क्योंकि देश के विकास के लिए बेहतर शिक्षा सबसे जरूरी कारक है। तो आइये इस शिक्षक दिवस पर शिक्षकों से अनुरोध करते हैं कि देश के विकास के लिए वे अपने उत्तरदायित्वों एवं कर्तव्यों का निर्वाहन पूरी ईमानदारी से करें और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सपनों को साकार करें।