सुप्रीम कोर्ट में इस्लामिक तलाक (तीन बार तलाक कहना) के खिलाफ एक और याचिका दायर की गयी है। याचिका के जरिये एक मुस्लिम महिला ने ये सवाल किया है कि क्या मनमाने ढंग और एक तरफा इस्लामिक तलाक से उसे उसके हक़ और बच्चों की कस्टडी से वंचित किया जा सकता है। हावड़ा की इशरत जहां ने अपने वकील वी.के. बाजू के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। जिसके जरिये उसने तीन तलाक़ की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है, और मांग की है कि कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लिकेशन एक्ट, 1937 के सेक्शन 2 को असंवैधानिक घोषित करे।
जहां के पति ने उन्हें इस्लामिक तलाक के जरिये तलाक़ दिया था लेकिन उसके बाद भी वो अपने ससुराल में ही रह रही हैं। और वहाँ उनकी जान को काफी खतरा है। उनके ससुराल वालों द्वारा उन्हें बहुत प्रताड़ित किया जाता है और उनसे उनके बच्चों को भी ज़बरदस्ती उनसे अलग कर दिया गया है। उनके 4 बच्चे हैं। उनके ससुराल वाले लगातार उन्हे घर से निकालने के प्रयास में लगे रहते हैं। जहां ने बताया, ‘मेरे पति और उनके रिश्तेदार मुझे ससुराल से बाहर करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।’
आर्टिकल 21 हर नागरिक को गरीमा के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है जिस पर इशरत ने कोर्ट से पूछा है कि क्या मनमाने ढंग से दिये गए ट्रिपल तलाक़ की वजह से उसे उसके अधिकारों से वंचित रखा जाएगा। याचिका में कहा गया है, ‘याचिकाकर्ता के पास कोई सहारा नहीं है क्योंकि उनके माता-पिता बिहार में रहते हैं। वह अपनी बहन की मदद से किसी तरह रह रही है। पुलिस भी उसके बच्चो को ढूँढने की कोई कोशिश नहीं कर रही है।’ शुक्रवार को याचिका की सुनवाई की जाएगी।
तलाक़ की पीड़ित महिलों के अतिरिक्त कई महिला संगठनों ने भी तलाक़ संबंधी पर्सनल लॉ पर सवाल उठाया है। जबकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि तीन तलाक़ की वैधता की जांच करने का कोर्ट को कोई अधिकार नहीं है।