गांवों की बिजली व्यवस्था कुछ ऐसी है, कि वहां कई तरह से बिजली की जरूरत रहती है। सबसे अहम ट्यूबवेल के लिए, जिसके लिए तीन फेज में छह से आठ घंटे बिजली की जरूरत है। वहीं दूसरा घरों के लिए। किसान को चौबीस घंटे बिजली के बल्ब जलने की बजाए छह घंटे ट्यूबवेल के लिए बिजली की ज्यादा जरूरत रहती है। वर्तमान व्यवस्था इस दिक्कत को ठीक करने लायक नहीं है। इस व्यवस्था का लागू करने के लिए प्रदेश भर में तमाम फीडर अलग-अलग करने पड़ेंगे। हालांकि प्रदेश में कई जगह अब काम हो रहा है लेकिन इसमें अभी भी कम से कम दो साल लगने की उम्मीद है।
उत्तर प्रदेश में जितने बिजली कनेक्शन हैं, वहां चौबीस घंटे बिजली पहुंचाना टेढ़ी खीर है। अगर यूपी सरकार चौबीस घंटे की मांग के हिसाब से बिजली केंद्रीय पूल आदि से जुटा भी ले तो भी वह जनता तक इसे पहुंचा नहीं सकेगी। कारण ये है कि प्रदेश में चौबीस घंटे डिस्ट्रीब्यूशन का नेटवर्क सक्षम नहीं है। लगातार बिजली सप्लाई हुई तो ट्रांसफॉर्मर ही उड़ जाएंगे।
सिर्फ राजधानी लखनऊ की ही बात करें तो यहां चौबीस घंटे बिजली उपलब्ध है लेकिन डिस्ट्रीब्यूशन में मजबूरी में एक से डेढ़ घंटे कटौती करनी ही पड़ती है। कारण ये है कि प्रति व्यक्ति खपत इतनी है कि अगर चौबीस घंटे सप्लाई दी गई तो इलाके का ट्रांसफॉर्मर ही उड़ जाएगा क्योंकि उसकी उतनी क्षमता ही नहीं है। इसके अलावा तारों की स्थिति भी बेहद खराब है। इसमें सुधार के लिए काफी समय और धन लगेगा।