सोचा जा रहा था कि पिछले लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस और RLD गठबंधन के तौर पर लड़ रहे थे, तब जिन विधानसभा क्षेत्रों में RLD को SP से ज्यादा वोट मिले, उन सीटों की पेशकश भी कांग्रेस को ही की जाए। एक दर्जन अतिरिक्त सीट देने तक की तो हम सोच सकते हैं, लेकिन इससे ज्यादा नहीं।’ हालांकि इस मामले में आखिरी फैसला मुलायम पर निर्भर करता है। मुलायम इस गठबंधन को लेकर शिवपाल-अमर की ओर झुकते हैं, या फिर उनका झुकाव अखिलेश-राम गोपाल की ओर होता है, यह रुख भी काफी अहम साबित होगा।
पार्टी की इस गुटबाजी और आंतरिक कलह में कांग्रेस को मोलभाव करने का अच्छा मौका हाथ लग गया है। हालांकि सूत्रों का यह भी कहना है कि मुलायम 1992 के बाबरी विध्वंस के बाद से ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन करने के पक्ष में कभी नहीं रहे। अखिलेश-रामगोपाल का गुट हो या फिर शिवपाल-अमर सिंह का धड़ा, दोनों को ही इस गठबंधन के लिए मुलायम को राजी करना होगा। एक बार मुलायम को मना लेने के बाद पार्टी के अंदर अपने विरोधी गुट पर बढ़त कायम करने का उनका रास्ता भी काफी हद तक साफ हो जाएगा।