नूर बताती हैं, ‘बहुत बार दिल में ख्याल आता है कि मर जाऊं, खुद को खत्म कर लूं। लेकिन अपने बच्चों की खातिर मुझे जीना पड़ा।’ ISIS अपने क्रूर तरीकों के लिए कुख्यात है, लेकिन यजिदी समूह के साथ इनका रवैया बदतर था। ISIS यजिद समुदाय को ‘शैतान का उपासक’ बताता है। जीने के अपने अलग तौर-तरीकों और खान-पान की अलग आदतों के कारण भी यजिदी कट्टरपंथियों के निशाने पर रहते हैं। बड़ी संख्या में यजिद पुरुषों और उम्रदराज महिलाओं को मौत के घाट उतारा गया, वहीं महिलाओं और बच्चियों को गुलाम बनाकर उन्हें केवल सेक्स के इस्तेमाल में लाई जाने वाली ‘चीज’ बना दिया गया। एक ही महिला को कई-कई बार बेचा गया। यजिदी आबादी को मध्यकालीन बर्बरता के वीभत्स अनुभवों से गुजरना पड़ा।
लालिश में पहली बार आने वाला कोई शख्स शायद इस रस्म को किसी भी अन्य धार्मिक रीति-रिवाज जैसा ही समझेगा, लेकिन असल में ISIS के हाथ अमानवीय और बर्बर क्रूरताओं का शिकार हुए इस समुदाय के लिए उन सारी दर्दनाक व अपमानजनक यादों से मुक्ति पाने का यह एक तरीका है। यजिदी समुदाय शुरूआत से ही इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर रहा है। 2014 से लेकर अबतक ISIS ने इस समुदाय पर ऐसे-ऐसे अत्याचार किए कि आम इंसान उसकी कल्पना तक नहीं कर सकता है। सीरिया की सीमा के पास, मोसुल के बहुत नजदीक यजिदी लोगों का गढ़ ‘सिनजर’ बसा था। उस वक्त सिनजर में 4 लाख के करीब यजिदी रहते थे। मोसुल पर ISIS का कब्जा होने के बाद रातोरात यजिदी लोगों की जिंदगी नारकीय हो गई। इस बात को 3 साल बीत चुके हैं और मोसुल में ISIS का अस्तित्व अपने अंत पर पहुंच चुका है। हजारों की संख्या में यजिदी आज भी लापता हैं। माना जा रहा है कि हजारों को ISIS ने नृशंस तरीके से मार डाला। ये अत्याचार कितने भयावह थे और किस स्तर तक हुए, इसकी तहें धीरे-धीरे खुलेंगी। मोसुल में ISIS का नामोनिशां पूरी तरह खत्म होने की कगार पर है। एकबार जब यह युद्ध पूरी तरह खत्म हो जाएगा, तब जाकर ISIS की अमानवीयता के सारे पहलू खुलकर सामने आएंगे।