नई दिल्ली : भोपाल सेंट्रल जेल से सोमवार तड़के आठ संदिग्ध आतंकवादियों के फरार होने और कुछ ही घंटों बाद एनकाउंटर में उनके मारे जाने के बाद स्टूमडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) एक बार फिर चर्चा में है। देश में इससे पहले कई आतंकी वारदातों में भी इस संगठन के लोगों का हाथ होने की बात सामने आई है। साथ ही यह संगठन पाकिस्तांन की खुफिया एजेंसियों और पड़ोसी मुल्कत स्थित आतंकवादी समूहों के इशारों पर काम करता है और उनके लिए लड़ाकों की सप्लाीई करता है। तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक रैली पर जो हमला किया गया था, उससे भी इस संगठन के तार जुड़े हुए हैं।
पाकिस्तानी आतंकियों का मददगार है सिमी
सिमी सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का प्रमुख सबब बना हुआ है। यह संगठन देश में कई आतंकी हमलों में शामिल आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) और पाकिस्ताैन स्थित आतंकवादी समूहों मसलन, लश्कमर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मकद को लड़ाकों की सप्लारई करता रहा है। 1990 के दशक में इस संगठन का झुकाव चरमपंथी विचारधारा की तरफ बिल्कुहल साफ हो गया। पिछले सालों के दौरान इस संगठन ने मुस्लिम युवाओं को चरमपंथ की तरफ खींचा है। इसने आतंकी हमलों की योजना बनाने और उसे पूरा करने की खातिर युवाओं को ट्रेनिंग देने के लिए नेटवर्क बनाया है। कई बार ऐसा पाकिस्ताेन की खुफिया एजेंसी से सांठगाठ के साथ किया गया है जो भारत के खिलाफ हिंसा का निर्देश देती है।
2001 में एक सम्मेहलन के दौरान सिमी के कई नेताओं ने अल-कायदा के प्रमुख रहे ओसामा बिन लादेन को अपना भाई बताया था। इन नेताओं में अशरफ जाफरी, यासीन फलाही, जमील सिद्दीकी, सफदर नागौरी आदि शामिल थे। 2001 में भले ही सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन असली समस्याि 2006 में सामने आई थी। तब नागौरी साफ तौर पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हो गया था।
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