नोटबंदी की ये 5 बातें पढ़कर आप खुद तय करें कि मोदी ज्यादा समझ रहते हैं या मनमोहन ? पढ़ें जरूर

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नोटबंदी

नोटबंदी को एक महीने से लंबा वक्त गुजर चुका है कि लेकिन इस एक महीने में देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है। बड़े-बड़े अर्थशास्त्री भी इस बात को मानते हैं कि पिछले एक महीने में देश में रुपये का लेन-देन बुरी तरह बाधित हुआ, अगर इस असर को सामाजिक तौर पर देखा जाए तो इनकार नहीं किया जा सकता है कि नोटबंदी ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है। गरीब से रोजगार छिन गया और मजदूर से उसकी दिहाड़ी, आम आदमी लाइनों में खड़ा है और बेगुनाह जनता दम तोड़ रही है। आकंड़े चौंकाने वाले हैं कि बैंकों की लाइनों में अबतक 100 लोगों की मौत हो चुकी है।

सरकार का दावा है कि समस्य ज्यादा दिन तक नहीं रहने वाली, बहुत जल्द इस समस्या से निजात मिल जाएगी लेकिन सवाल ये है कि अबतक जो कुछ हुआ, उसका जिम्मेदार कौन है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहले राज्‍य सभा में और फिर एक अखबार में कॉलम लिखकर बताया कि कैसे 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को नुकसान झेलना होगा।

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मनमोहन ने वर्तमान सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ”यह मानना खुद की पीठ थपथपाने वाली बात होगी कि एक व्‍यक्ति के पास सारे उपाय हैं और पुरानी सरकार कालेधन को लेकर केवल भावुक रहीं। ऐसा नहीं होता।” अपने कॉलम में उन्‍होंने कई अहम सवाल उठाए। मनमोहन की अर्थशास्त्री के रूप में काबिलियत का लोहा पूरी दुनिया मानती है।

चलिए जानते हैं वे पांच कारण जो यह साबित हैं कि वर्तमान स्थिति के बारे में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ज्‍यादा समझ है।

नकद लेनदेन तर्कसंगत है: मनमोहन ने कहा, ”भारतीय नकद कमाते हैं, नकद में लेनदेन करते हैं और नकद में ही बचत करते हैं, सभी जायज तरीके से।” उन्‍होंने देश में अभी भी लाखों लोग नकद पर आश्रित हैं। ऐसा लगता है कि पुराने नोटों को बैन करने का फैसला यह सोचकर लिया गया कि सारा नकद काला धन है और सारा काला धन नकद में ही है। यह सच से दूर है।

बेहिसाब सं‍पत्ति केवल नकद में इकट्ठी नहीं होती: काला धन बरसों से इकट्ठा किया जाता है। लेकिन काला धन रखने वाले लोग अपना पैसा केवल नकदी में नहीं रखते हैं। वे इसे जमीन, सोना, फोरेन एक्‍सचेंज के रूप में भी रखते हैं। केवल नकदी पर कार्रवाई करने से वास्‍तविक दोषियों पर खास असर नहीं होगा। लेकिन इससे बाकी लोगों पर बुरा असर होगा।

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करेंसी को बदलना बड़ी चुनौती: इस तरह के बड़े बदलाव केवल एक रात में नहीं होते हैं। मनमोहन ने कहा, ”करोड़ों रुपये के पुराने नोटों को नए नोटों से बदलना विशाल काम है।” उन्‍होंने कई देशों का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां पर किस तरह से बदलाव हुए हैं। देश में वर्तमान में अराजकता की स्थिति है। लोग लाइनों में लगने से मर रहे हैं। मनमोहन के अनुसार यह सब जल्‍दबाजी में लिए गए फैसले के चलते हुआ है।

कमजोर वर्ग की अनदेखी: पूर्व प्रधानमंत्री के अनुसार इस फैसले ने लोगों के भारत सरकार में विश्‍वास को तोड़ दिया है। उन्‍हें अपना ही पैसा लेने के लिए लाइनों में लगना पड़ रहा है। यह सही बात है कि काला धन समाज के परेशानी है लेकिन इसे दूर करने के प्रयास में ईमानदार भारतीयों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।

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अर्थव्यवस्‍था पर बुरा असर: मनमोहन के अनुसार भारत का व्‍यापार निचले स्‍तर पर चल रहा है। औद्योगिक उत्‍पादन कम रह रहा है और नौकरियों की कमी है। इस तरह के समय में पैसों की कमी से बुरा असर पड़ेगा। भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था नकदी आधारित है। पुरानी करेंसी अब बीती बात हो चुकी है और नई करेंसी अब भी कई लोगों तक नहीं पहुंची है। इसका बुरा असर पड़ेगा।

जाहिर है कि कांग्रेस नोटबंदी पर सरकार के एलान का समर्थन तो कर रही है लेकिन वह सरकार से जवाब मांग रही है। साथ ही उसका सवाल नोटबंदी के लागू होने के तरीके पर है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहले राज्‍य सभा में और फिर एक अखबार में कॉलम लिखकर बताया कि कैसे 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को नुकसान झेलना होगा।

(जनसत्ता के हवाले से खबर)