चुनाव के नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दलों की तैयारियां शुरू हो जाती है ऐसे ही तैयारी का हिस्सा बनते है यह नारे, जो उनकी विचारधारा और संस्कृति को बयां करते हैं। खास तौर पर उत्तर प्रदेश में नारों का चलन हमेशा से काफी ज्यादा रहा है। इतना कि कई बार तो इन नारों के सहारे ही राजनीतिक दल चुनाव की तस्वीर बदलने में भी कामयाब रहे हैं। 90 के दशक में बाबरी विध्वंस के बाद बीजेपी के नारे ‘बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का’ ने पार्टी को चुनाव में फायदा दिलवाया, तो वहीं एसपी-बीएसपी के संयुक्त नारे ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्रीराम’ ने प्रदेश में राम मंदिर लहर को थामने का काम किया। 2017 के चुनाव में भी नारों की भरमार है।
यूपी के चुनाव में यूं तो सभी पार्टियों ने चुनावी नारे दिए हैं, पर इस बार सबसे ज्यादा दिलचस्प नारे समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के मुंह से सुनने को मिल रहे हैं। कई नारे नए हैं तो कुछ पुराने मशहूर नारों को बदलकर उन्हें नए शब्द दिए गए हैं। समाजवादी पार्टी के ज्यादातर नारे सीएम अखिलेश यादव के इर्द-गिर्द की लिखे गए हैं। इन नारों में उनके पांच साल के कार्यकाल में हुए विकास का जिक्र है तो वहीं कार्यकर्ताओं की उनके प्रति निष्ठा भी झलकती है। अखिलेश के युवा समर्थक ‘ये जवानी है कुर्बान, अखिलेश भैया तेरे नाम’ का नारा लगाते देखे जा सकते हैं, वहीं अखिलेश की महिला समर्थक भी यह कहने में नहीं शरमा रहीं कि ‘हमारा सैंया कैसा हो, अखिलेश जैसा हो।’
सभी कार्यकर्ता मिलकर ‘जय जय जय जय जय अखिलेश’ नारा भी लगाते हैं। इसके अलावा ‘काम बोलता है’ और ‘विकास का पहिया अखिलेश भैया’ नारा भी कार्यकर्ताओं की जुबान पर है। अखिलेश की जय जयकार में कार्यकर्ता उनकी पत्नी डिंपल को नहीं भूलते, उनके लिए नाया लगाया जाता है, ‘जीत की चाबी, डिंपल भाभी।’