लद्दाख में चीन से मुकाबला करेंगे ‘महाराणा प्रताप’ और ‘टीपू सुल्तान’

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नई दिल्ली : 1962 में चीन से युद्ध के बाद पहली बार लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीनी सेना के किसी भी दुस्साहस का जवाब देने के लिए टीपू सुल्तान, महाराणा प्रताप और औरंगजेब ने मोर्चा संभाल लिया है। ये तीनों जांबाज भारतीय सेना की आर्म्ड यूनिट की टैंक रेजीमेंट हैं। इस समय लद्दाख में करीब 100 टैंक तैनात हैं।
एक टीवी चैनल के रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वी लद्दाख में टैंकों की तैनाती लगभग आठ माह पहले सर्दियों के दौरान ही हो गई थी। ये टैंक शून्य से नीचे हड्डियां जमा देने वाली ठंड में बर्फ से लदी चोटियों में भी पूरी तरह कारगर बताए जा रहे हैं। लगभग 54 साल बाद लद्दाख में टैंक ऑपरेशनल ड्यूटी पर सक्रिय बनाए गए हैं। इससे पूर्व वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय ही लद्दाख में टैंक इस्तेमाल हुए थे। उस समय यहां हवाई जहाज के जरिए पांच टैंक पहुंचाए गए थे। चीन के साथ युद्ध समाप्त होने के बाद टैंकों को वापस देश के अन्य सीमावर्ती इलाकों में भेज दिया गया था।

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संबंधित अधिकारियों ने बताया कि LAC से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर टैंक तैनात किए गए हैं, ताकि किसी भी अपरिहार्य स्थिति में इनकी मूवमेंट में देरी न हो। उन्होंने कहा कि यहां टैंकों को पहुंचाना और उन्हें आवश्यक स्थानों पर तैनात करना कोई आसान काम नहीं था। क्योंकि यहां की मौसमी परिस्थितियां पूरी तरह से अलग हैं। आक्सीजन कम है, सांस लेने में भी तकलीफ होती है। तापमान -45 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है।
लद्दाख में टैंकों के लिए एक विशेष तरह का ईंधन और लुब्रिकेंट का इस्तेमाल किया जाता है। टैंक को गर्म रखने के लिए उसे रात में दो बार चालू करना पड़ता है। अगर ऐसा नहीं किया जाए तो इसका इंजन और सिस्टम बिगड़ सकता है।
मालूम हो कि चीन ने लद्दाख के साथ सटे अपने इलाके में सैन्य गतिविधियों को विस्तार दिया है। उसकी सेना ने कई बार एलएसी का उल्लंघन भी किया है। चीनी सेना की तैयारियों को देखते हुए ही कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने ओल्डी एयरबेस को गतिशील बनाया है और उसके बाद अब टैंक यूनिट को तैनात किया है।

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