नई दिल्ली : मौत की सजा के खिलाफ चल रहे कैंपेन को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से प्रोत्साहन मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने दहेज के लिए अपनी गर्भवती पत्नी और बेटे को जिंदा जलाकर मारने वाले शख्स की मौत की सजा बरकरार रखने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मौत की सजा न्यायपालिका के सुधार के सिद्धांत के खिलाफ है। हालांकि यह मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलों की लिस्ट में आता है लेकिन कोर्ट ने अलग रुख अपनाया। शुक्रवार को जस्टिस पीसी घोष और आरएफ नरीमन की बेंच ने कहा, ‘आज देश में मौत की सजा किसी अपराध के लिए सबसे बड़ी सजा के रूप में स्थापित हो चुकी है, जो न्याय व्यवस्था में सुधार के सिद्धांत के खिलाफ है। सबूतों और हालात को ध्यान में रखते हुए इस मामले में मौत की सजा दिया जाना संभव नहीं है।’
कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपी को ताउम्र जेल में रखे जाने का फैसला भी सजा का जरूरी क्राइटीरिया पूरा करता है। यह कहते हुए कोर्ट ने आरोपी निसार रमजान सैयद को 2010 में अपनी गर्भवती पत्नी और बेटे की हत्या के आरोप में अपनी बाकी की जिंदगी जेल में गुजारने की सजा सुनाई।
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