अलीगढ़ : स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) फिर सुर्खियों में है। सिमी के सफदर हुसैन नागौरी समेत 11 आतंकियों को सजा होने से सभी की निगाहें अलीगढ़ की ओर घूम गई हैं, क्योंकि 40 साल पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के कुछ छात्रों ने ही सिमी नाम के संगठन को खड़ा किया था। यह संगठन एक दशक बाद ही रास्ता भटक गया। 80 के दशक में ही तमाम कार्यकर्ता उग्रवाद की ओर बढ़ चुके थे। इनकी हरकतें तब सामने आईं, जब अयोध्या में विवादित ढांचे का विध्वंस हुआ। तब सिमी नेताओं ने तिरंगे तक को सलाम करने से इन्कार कर दिया था। कई राज्यों में बम धमाकों में संलिप्तता की पुष्टि के बाद 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। तभी से शहर के शमशाद मार्केट में खुला संगठन का दफ्तर सील है।
देश में आपातकाल (1975) के दौरान तमाम छात्र संगठनों पर भी पाबंदी लगी थी। आपातकाल हटा तो छात्रों को लामबंद करने के इरादे से 25 अप्रैल 1977 को मुहम्मद अहमदउल्ला सिद्दीकी ने अलीगढ़ में सिमी की स्थापना की। शुरुआती सदस्यों में कुछ एएमयू छात्र थे, कुछ पूर्व छात्र। एएमयू से एमएससी (फिजिक्स) कर रहे गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) के रहने वाले सिद्दीकी ने संस्थापक अध्यक्ष के रूप में एएमयू से सटे शमशाद मार्केट के एक कमरे में दफ्तर खोला था। सिमी सदस्य जमात-ए-इस्लामी से प्रभावित थे। खुफिया इकाइयों से जुड़े सूत्र बताते हैं कि 80 के दशक में ही महाराष्ट्र, गुजरात व मध्यप्रदेश के कई सदस्य कश्मीरी उग्रवादियों के संपर्क मंह आ गए। ये बातें उजागर होनी शुरू हुईं 1992 में बाबरी ढांचा विध्वंस होने के बाद। इसके बाद कट्टरवाद और बढ़ा। सिमी की उर्दू व अंग्रेजी भाषा में निकलने वाली पत्रिका में भी ‘वन-बुक, वन-प्रे’ (सिर्फ कुरान व अल्लाह को मानने) की बातें मुखर होकर कही जाने लगीं।
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